Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 135
________________ 122 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन 20. पंचमी विभक्ति के एकवचन में न्तो, तो, ओ, ते- उ, हि, हिंतो और प्रत्यय लोप भी होता है। इन प्रत्यय के पश्चात् दीर्घ हो जाता है। ज्ञाताधर्मकथा में न्तो, तो, ओ एवं प्रत्यय लोप की बहुलता है। यथा- 'मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि'। 1 'अहं पिट्ठातो विधुणामि' 9/39 (तो-आतो) पंचमी बहुवचन में उक्त प्रत्ययों का ही प्रयोग होता है परन्तु कहीं-कहीं पर "हिंतो' प्रत्यय का भी प्रयोग हुआ है ‘गुणोववेयाओ सरिसेहिन्तो रायकुलेहिन्तो आणियल्लियाओ।२ गिहेहिंतो पडिनिक्खमंति 1/33 / .. . नोट:- निकलने/बाहर जाने/अलग होने में हिंतो प्रत्यय का प्रयोग ज्ञाताधर्म में कई जगह प्रयुक्त है। 21. सप्तमी विभक्ति के एकवचन में ए, म्मि इन दो प्रत्ययों का विशेष रूप से प्रयोग होता है। परन्त ज्ञाताधर्मकथा में इन दोनों प्रयोगों के अतिरिक्त “अंसि' प्रत्यय की बहुलता है। यथा- 'कायंसि निवइयंसि समाणंसि'।३ (अंसि) पदेसंसि, तंसि। अंतोजलम्मि५, पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे६ (ए) नोट:- मणसि 1/68 जैसे प्रयोग भी ज्ञाताधर्म ,में हैं। (उ) 22. सप्तमी बहुवचन में सु, सुं इन दो प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ज्ञाताधर्मकथा में इन दोनों का प्रयोग है। परन्तु “सु' प्रत्यय की बहुलता सर्वत्र है। यथा"बहुसु कज्जेसु य, कारणेसु य, कुडुंबेसु य, मंतेसु य, गुज्झेसु य'। नोट:- अकारांत पुल्लिंग शब्दों में जो प्रत्यय लगते हैं वे ही प्रत्यय प्राय: इकारांत, उकारांत आदि शब्दों में लगते हैं परन्तु ज्ञाताधर्मकथा के कुछ प्रयोगों में भिन्नता है। उन प्रयोगों को प्रस्तुत किया जा रहा है- ‘सुद्धेण वारिणा'८ तृतीय में ‘णा' प्रत्यय का प्रयोग। 23. नपुंसकलिंग- नपुंसकलिंग के प्रथमा एवं द्वितीय विभक्ति में प्रायः एक ही समान रूप चलते हैं। जैसेप्रथमा एकवचन प्रथमा बहुवचन वणाइ, वणाइं, वणाणि, वणाणिं 1. ज्ञाताधर्मकथा, 7/6. 2. वही, 1/123. 3. वही, 7/9. 4. वही, 9/12. 5. वही, 9/11. 6. वही, 13/17. 7. वही, 7/30. 8. वही, 1/33. वणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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