Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ षष्ठ अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण भाषा एक वैचारिक शक्ति है जो आत्मबुद्धि से अर्थों को जानकर मन के अनकल विवक्षा से प्रेरित तथा मन और शरीर की शक्ति पर वायु की तरह जोर डालती है। इसी से भाषा या विचार निःसृत होता है। भाषा भौगोलिक परिस्थितियों के कारण विकास एवं विस्तार को प्राप्त होती है। उसी से अनेक भाषाएं बनती हैं तथा भाषा परिवार, उपभाषा परिवार एवं बोलियों आदि का जन्म होता है। विश्व की भाषाओं के विषय में भाषा वैज्ञानिकों का यही विचार है। उन्होंने भाषा को एक परिवार के रूप में स्वीकार किया है। जिनके भारोपीय परिवार, सेमेटिक परिवार, हेमेटिक परिवार आदि बारह परिवारों का उल्लेख किया गया है इन्हीं परिवारों में से एक महत्वपूर्ण परिवार भारोपीय परिवार है। इसी परिवार के अन्तर्गत भारतीय आर्य भाषा परिवार है जिसे अत्यन्त समृद्ध माना गया है। इसी परिवार के साथ प्राकृत भाषा का सम्बन्ध है। विद्वानों ने भारतीय आर्य शाखा परिवार को निम्न प्रकार से विभक्त किया है।२ (क) प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (1600 ई.पू.- 600 ई.पू.) (ख) मध्यकालीन आर्य भाषा काल (600 ई.पू. 1000 ई.) (ग) आधुनिक आर्य भाषा काल (ई. 1000 वर्तमान समय) क. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल - वैदिक युग के साहित्य को इस परिवार के अन्तर्गत रखा जाता है। प्रारम्भिक काल में साहित्य की रचना जिस भाषा में की जाती थी उसे 'छन्दस' कहते हैं। यही प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का प्रारम्भिक रूप था। वैदिक भाषा में कई प्रकार की भाषाओं के ध्वन्यात्मक शब्द, समसामयिक प्रवृत्तियाँ, प्रकृति एवं प्रत्यय समाहित हैं। इसी कारण वैदिक काल की भाषा में जो शब्द विद्यमान थे वे जनभाषा या 1. पाणिनीय शिक्षा श्लोक 6, चौखम्बा संस्करण, 1948. 2. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ० 2. . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org