Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 115 तब प्राकृत शब्द बन जाता है। आधुनिक विचारकों ने भी प्राकृत भाषा को प्रकृतिजन्य भाषा या जनता की भाषा माना है। 1. डॉ. पिशेल के अनुसार प्राकृत भाषाओं की जड़े जनता की बोलियों के भीतर जमी हुई थी और इनके मुख्य तत्त्व आदिकाल में जीती जागती बोली जाने वाली भाषा से लिए गये हैं, किन्तु बोलचाल की वे भाषाएँ जो बाद की साहित्यिक भाषाओं के पद पर प्रतिष्ठित हुईं, संस्कृत की भांति ही बहुत ही ठोकी-पीटी गईं ताकि उनका एक सुगठित रूप बन जाए।१ 2. डॉ. एलफ्रेड सी. वूल्नर ने प्राकृत भाषा का विकास संस्कृत से नहीं माना है। 3. डॉ. पी.डी: गुणे ने जनभाषा को प्राकृत भाषा कहा है।३ 4. डॉ० कत्रे ने प्रकृतिजन्य भाषा को ही प्राकृत कहा है। 5. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने 'प्राकृत भाषा का इतिहास' में प्राकृत को जन बोली स्वीकार करते हुए प्रकृतिजन्य भाषा ही माना है। 6. डॉ. नेमिचन्द्र जैन ने लिखा है कि प्राकृत भाषा प्रादेशिक भाषाओं से विकसित हुई है। इस भाषा की प्रकृति में लोकतत्त्व के साथ साहित्यिक तत्त्व ही मिश्रित है।५ 7. डॉ. प्रेमसुमन जैन ने 'प्राकृत स्वयं शिक्षक' की भूमिका में लिखा है कि प्राकृत - मानव जीवन के स्वाभाविक परिवेश से जुड़ी हुई भाषा है।६ 8. डॉ. उदयचन्द्र जैन ने 'शौरसेनी एवं प्राकृत व्याकरण' एवं 'हेम प्राकृत व्याकरण ... शिक्षक की भूमिका में प्रकृतिजन्य भाषा को ही प्राकृत कहा है। 1. पिशेल- प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृ० 14, राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना. 2. वुल्लर- इन्ट्रोडक्सन टू प्राकृत. 3. गुणे पी.डी.- एन इन्ट्रोडक्सन टू कम्प्रेटीव फिलोसफी, पृ०-१६३. .. 4. कत्रे- प्राकृत भाषाओं का विकास, भूमिका 10. 5. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ०-१६. - 6. प्राकृत स्वयं शिक्षक, भूमिका. 7. शौरसेनी प्राकृत व्याकरण भूमिका, पृ० 8. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org