Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण .119 को अर्धमागधी कहा, 1 स्थानांग एवं अनुयोगद्वार सूत्र ने जिस भाषा को ऋषिभाषित कहार एवं आचार्य हेमचंद ने जिस भाषा को आर्ष कहा वही जैनागमों की प्राकृत भाषा है।३ डॉ० जेकोबी ने जैन आगमों की भाषा को प्राचीन महाराष्ट्री कहा है।४ परन्तु डॉ. पिशेल इस बात का खण्डन कर आगमों की भाषा को अर्द्धमागधी ही मानते हैं। ___ भरत के नाट्य-शास्त्र में जिन सात भाषाओं का उल्लेख है उनमें अर्धमागधी एक है।५ क्रमदीश्वर ने प्राकृत व्याकरण में 'महाराष्ट्री मिश्राऽर्धमागधी:' कहकर अर्धमागधी को महाराष्ट्री मिश्रित मागधी कहा है।६ परन्तु निष्कर्ष यह है कि आगम ग्रन्थों में अर्धमागधी भाषा अधिक है। डॉ. हार्नल ने अर्धमागधी को ही नाटकीय अर्धमागधी, महाराष्ट्री व शौरसेनी भाषाओं का मूल माना है।" अर्धमागधी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ 1. अर्धमागधी में क के स्थान पर ग एवं य पाया जाता है। आकाश- आगास, श्रावक- सावग, लोक-लोय 2. दो स्वरों के बीच असंयुक्त 'ग' का लोप या परिवर्तन नहीं होता है। : आगम- आगम 3. शब्द के आदि, मध्य व संयोग में ण एवं न दोनों ही स्थित रहते हैं। नदी- नई 4. गृह शब्द के स्थान पर गह, घर, हर, गिह आदेश होते हैं। 5. अर्धमागधी प्राकृत में पुलिंग और नपुंसकलिंग का प्रयोग होता है। 1. “देवाणं अद्धमागहाए भासाए भासंति" 2. सवकयंस पाइआ.............इसिभासिया, व्याख्या प्रज्ञप्ति 5/4/22. . 3. हेम-प्राकृत व्याकरण-सूत्र 1/3. 4. कल्पसूत्र- सेक्रेट बुक आफ ट्रस्ट, भाग 12. 5. * नाट्यशास्त्र- भरत सूत्र 17, 48 11. . . 6.. पाइअ सदमहण्णवो- प्रस्तावना, पृ० 26. 7. वही, पृ० 26. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org