Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन 105 का दृष्टान्तं, कूर्म में दो कूर्मों और दो शृगालों के उदाहरण, शैलक में अरिष्टनेमि, थावच्चा आदि का निरूपण, रोहिणीज्ञात में चार पुत्रवधुओं और पाँच धान्यकणों से जीव जगत का बोध, मल्ली अध्ययन के प्रसंग से नारी की महानता, माकन्दी के दृष्टान्त से वनखण्ड की विशेषता, चन्द्र के माध्यम से हीनता और श्रेष्ठता आदि ऐसे ही सभी अध्ययन दृष्टान्त से परिपूर्ण हैं। __ कथाकार के वाक्य प्रयोगों में अनुप्रास अलंकार तो सर्वत्र ही हैं। कथाकार एक ही तरह के अनेक शब्दों के प्रयोग करने में अत्यन्त निपुण है। यथाखणमाणा-खणमाणा पोक्खरिणी जाया जय-जय णंदा। जय-जय भद्दा। जय णंदा। इस तरह गद्यात्मक कथा में अलंकारों का प्रयोग भी शब्द एवं पदलालित्य की सूचना देता है। कथाकार ने बहुधा वीप्सात्मक प्रयोग को भी अपनाया है जिससे शब्द और पद में अधिक लालित्य आ गया है। यथा- भुंज्जो-भुंज्जो अणुवूहई।३ ज्ञाताधर्म में रस योजना वाक्यं रसात्मकं काव्यम् अर्थात् रसात्मक वाक्य काव्य में रमणीयता उत्पन्न करते हैं। रमणीयता का अर्थ ही रसानुभूति है। यह ज्ञाताधर्म में सर्वत्र दिखाई पड़ती है। . साहित्य में रस को काव्य का प्राण माना गया है। काव्य का उद्देश्य भी यही है। रस की अनुभूति व्यक्ति को तन्मय, शरीर को पुलकित, वचनों को गद्गद् और मन को आनन्दित करती है। ज्ञाताधर्म एक गद्यात्मक कथा काव्य होते हुए भी रसात्मकता की अनुभूति से परिपूरित है। .. काव्यानुशासन में रस के निम्न भेद माने गए हैं: 1. शृंगार रस रति या प्रेम 2. हास्य रस हास्य या हंसी 3.. करुण रस शोक 4. रौद्र रस क्रोध 5. वीर रस उत्साह 6. भयानक रस भय 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 13/12. 2. वही, 1/154. 3. वही, 1/41. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org