Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 106 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन 7. वीभत्स रस घृणा 8. अद्भूत रस आश्चर्य 9. शान्त रस शम या निवेद ज्ञाताधर्म के रसात्मक भावों से परिपूर्ण कुछ दृष्टान्त इस प्रकार हैश्रृंगार रस इसके दो पक्ष है- संयोग शृंगार और वियोग शृंगार। संयोग शृंगार के रूप में धारिणी के नख, शिख, मुख आदि की शोभा को लिया जा सकता है। कथाकार ने नख से शिख तक का वर्णन अलंकृत भाषा में इस प्रकार किया है- उसके हाथ-पैर बहुत सुकुमार, शंक-चक्र आदि शुभ लक्षणों से युक्त, चन्द्रमा से युक्त सौम्य आकृति, मध्यभाग मुट्ठी में आ सकने वाला त्रिवलीयुक्त है, उसका मुख-मण्डल कार्तिक पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान निर्मल, गंडलेखा कपोल पत्रवल्ली कुंडलों से सुशोभित तथा उसका सुशोभन वेष शृंगार रस का स्थान ही प्रतीत होता. था। अन्यत्र भी श्रृंगार रस का संयोग पक्ष है। मल्ली की माता एवं मल्ली के जन्म का वर्णन शृंगारिक रूप में ही किया गया है।२ द्रौपदी नामक सोलहवें अध्ययन में भद्रिका की बालिका को हाथी के तालु के समान सुकुमार और कोमल कहा गया है।३ इसी अध्ययन में द्रौपदी के रूप सौन्दर्य का वर्णन अलंकृत रूप में किया गया है। वियोग शृंगार की झलक उत्क्षिप्तज्ञात नामक प्रथम अध्ययन में मिलती है। रानी धारिणी की दोहद पूर्ति न होने पर शोक संतप्त होना स्वाभाविक था। उस समय का वर्णन कुछ इस प्रकार है- वे मानसिक संताप से युक्त शुष्क हो गयीं, भूख से व्याप्त मांस रहित हो गयीं, भोजन-पान आदि का त्याग करने से श्रान्त हो गयीं उनके मुख और नयन नीचे झुक गए, पुष्प-गंध-माला, अलंकार एवं हार आदि रुचि रहित हो गए, उन्होनें जल क्रीड़ा आदि का परित्याग कर दिया। हास्य रस जहाँ विकृत आकार, वाणी, वेश और चेष्टा आदि देखने से हास्य या हँसी उत्पन्न हो वहाँ हास्य रस होता है। भद्रा कहती है कि तुम पुत्र दो या पुत्री या नाग, भूत यक्ष आदि की पूजा करो।६ ऐसे वाक्यों से हंसी आना स्वाभाविक है। 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/16. 3. वही, 14/35. 5. वही, 1/45. 2. वही, 8/32. 4. वही, 16/122. 6. वही, 2/14. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org