Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 108
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन 95 प्रथाओं, सामाजिक व्यवस्थाओं आदि की ओर ले जाती हैं। इनकी कथाओं में बद्धि चमत्कार, वर्णन कौशल, लोकविश्वास, उत्सव, रीति-रिवाज, कला-कौशल, मनोरंजन आदि विद्यमान हैं। साथ ही इनकी कथानकों में लोक संस्कृति के वास्तविक प्रतिबिम्ब सहज और स्वाभाविक रूप में देखे जा सकते हैं। परन्तु इन्हें लोकमानस की मात्र सहज एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति ही कह सकते हैं, लोककथा नहीं। लोककथा में विश्वास, अन्धविश्वास, शकुन, अपशकुन, जादू-टोना, वशीकरणमंत्र आदि का समावेश होता है जो ज्ञाताधर्म की प्राचीन कथाओं में नहीं है। क्योंकि लोककथा मध्ययुग की देन है, प्राचीन युग की नहीं। यद्यपि ज्ञाताधर्मकथा में रीति-रिवाज, लोकमंगल की कामना, धर्मश्रद्धा, कुतूहल, मनोरंजन, उपदेशात्मकता, आश्चर्य, हास्य-विनोद, पारिवारिक स्थिति, पूर्वजन्म विवेचन, प्रेम प्रसंग आदि की पृष्ठभूमि विद्यमान है। 1. लोकमंगल की कामना ज्ञाताधर्मकथा के कथांशों में सर्वत्र लोकमंगल की कामना की गयी है। आर्य सुधर्मा और जम्बू स्वामी दोनों ही संयम और तप की भावना को लिए हुए वीर प्रभु के गुणों का स्मरण करते हैं और उनसे ही ज्ञाताधर्मकथा के स्वरूप की विवेचना का निवेदन करते हैं। धारिणी महारानी के गर्भवती होने पर उनके प्रियजन मंगल की कामना करते हैं। राजा श्रेणिक स्वयं कहते हैं कि हे देवानप्रिय! तमने आरोग्यकारी, तुष्टिकारी और कल्याणकारी महान स्वप्न देखे हैं।१ मेघकुमार के जन्म के समय राजा श्रेणिक ने लोकमंगल की कामना से ही कारागार से कैदियों को मुक्त किया था।२ मेघकुमार की उपासना में समस्त जीवों के प्रति कल्याण की भावना निहित है।३ दूसरे के द्रव्य का हरण करनेवाला विजय चोर एवं धन्य सार्थवाह कर्म के अनुसार एक ही जगह एक-दूसरे से बंधे हुए यातना को प्राप्त होते हैं, परन्तु वे दोनों भी मंगलकामना करते हैं। अण्डक में अण्डे की रक्षा का भाव लोकमंगल के भावों को ही व्यक्त करता है।४ .: शैलक राजा धर्म स्मरण कर श्रावक व्रत की मंगल कामना करते हैं। इसी अध्ययन में सुदर्शन को दिया गया प्रतिबोध भी लोकमंगल की कामना से युक्त है।६ रोहिणीज्ञात अध्ययन में पारिवारिक लोकमंगल की कामना की गई है। धन्य सार्थवाह परिवार में सुख-शान्ति चाहता है, इसी उद्देश्य से चारों पुत्रों और चारों बहुओं को पंच धान्य कण अर्थात् पांच अणुव्रत रूपी इसी उद्देश्य से अक्षत देता है कि कौन 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/22, 23. 2. वही, 1/90. 3. वही, 1/13. 4. वही, 3/3. 5. वही, 5/29. 6. वही, 5/38-39. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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