Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 80 . ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन है। तेतलिपुत्र का पाणिग्रहण संस्कार पोट्टिला के साथ होता है और वे दोनों ही स्नेहपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। उसी समय साध्वी सुव्रता का समागम होता है। पोट्टिला अपने पति के द्वारा कुछ समय बाद तिरस्कृत कर दी जाती है। उसी तिरस्कृत . भाव को लेकर पोट्टिला ने साध्वियों से निवेदन किया। उसके निवेदन पर उन्होंने धर्म उपदेश दिया तब वह श्राविका बन गई। इसमें एक के बाद एक अवान्तर कथाओं के माध्यम से श्राविका के गणों का उल्लेख किया गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि ज्ञाताधर्म की कथाएँ एक मात्र घटनाक्रम को लिए हुए ही आगे नहीं बढ़ती, अपितु निश्चित वातावरण, निश्चित उद्देश्य को अपने में समाहित किये हुये आगे . . बढ़ती है। मौलिकता - ज्ञाताधर्म अनुभूतियों का कथा सागर है। इस सागर में सामान्य घटना से लेकर राज्यक्रांति, देशद्रोह, वैराग्य भाव आदि भी घटित हैं। ज्ञाताधर्म के कथांश में मानव से महामानव तक बनने की कला का समावेश हुआ है। कर्म के भेद व उसके आवरणों का वर्णन तम्बक अध्ययन में आया है। 1 अन्य अध्ययनों में भी विचारों की विशालता देखने को मिलती है। सत्य-दिग्दर्शन वस्तु-सत्य और काव्य-सत्य कथानक की वास्तविकता को अधिक रोचक बनाता है। माकन्दी अध्ययन में जिनपालित एवं जिनरक्षित का बार-बार समुद्रयात्रा करना सत्य का दिग्दर्शन कराता है।२ माता-पिता उनकी समुद्र यात्रा से परेशान थे, पर वे दोनों आज्ञा की अवहेलना करके विदेश यात्रा के लिए चले गए जिससे वे चक्रवात में फँस गए, जहाज टूट गया। यह वस्तु सत्य है। जिनपालित धार्मिक प्रवृत्ति का था। वह देवी का स्मरण करता है जिससे वह सुरक्षित स्थान को प्राप्त होता है और जिनरक्षित वासना के वशीभूत था इसलिए अपने लक्ष्य की ओर जाने में समर्थ नहीं हो पाता है। यह भी वस्तु-सत्य है परन्तु दोनों की मनोवैज्ञानिकता काव्य सत्य है। जिज्ञासा कथानक का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व जिज्ञासा है जो मनोरंजन के साथ जुड़ी होती है। ज्ञाताधर्मकथा में जिज्ञासा एवं कौतूहल को उत्पन्न करनेवाली कई घटनाएँ हैं। मेघकुमार, मल्ली, माकन्दीपुत्र, तेतलिपुत्र एवं द्रौपदी के प्रसंगों को पढ़ते समय 1. ज्ञाताधर्मकथांग 6/6. 2. वही, 9/5. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org