Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 102
________________ 89 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन 2. पात्रों का चित्रण- कथोपकथन घटनाओं का ही क्रम लिए हुए उपस्थित होता है जिससे पात्र का जीवन हर्ष, विषाद, मनोगतभाव आदि दर्पण की तरह सामने आ जाता है। ज्ञाताधर्म की पृष्ठभूमि में पात्र सर्वोपरि है ऐसा नहीं है, अपितु उनके चारित्र की विशेषताएँ मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी हुई हैं। “परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि जाव''।१ 3. निश्चित उद्देश्य- ज्ञाताधर्मकथा के कथानकों की परिणति कहीं सत्य तो कहीं अहिंसा, कहीं महाव्रत तो कहीं गुणव्रत, कहीं संयम तो कहीं तप आदि के उद्देश्य के रूप में होती है। कथाकार अपने कथानकों को निश्चित उद्देश्य में सीमित करने का सफल प्रयास किया है। परन्तु आवश्यकतानुसार उन्हें सीमित भी किया है और घटनाओं के क्रम से उन्हें बहु-आयामी बनाया है। ___ इस तरह कथोपकथन की स्वाभाविकता से युक्त ज्ञाताधर्मकथा निश्चित उद्देश्य, अनुकूल वातावरण, संकल्प; विकल्प, पात्रानुकूल चित्रण, सार्थकता, सजीवता आदि की दृष्टि से मानसिक धरातल के अनुरूप है। 4. देशकाल देशकाल के अन्तर्गत किसी भी कुटुम्ब, परिवार, समाज, देश या राष्ट्र की धार्मिक सामाजिक, राजनैतिक, वैचारिक आदि विशेषताओं को लिया जाता है जो सभी कथानक के मूल स्त्रोत में होती हैं। देशकाल के अनुसार कथानक पात्रों के औचित्य से कहीं प्राकृतिक दृश्यों को लेकर चलता है, कहीं उनकी मनोगत विशेषताओं को उद्घाटित करता है। पात्र की अच्छाई और बुराई दोनों ही इसमें निहित होती है। इन दोनों को कथाकार लेकर चलता है वह यथार्थ और आदर्श मानवीय या अमानवीय सदाचरण या दुराचरण दोनों ही परिस्थितियों को देश-काल के अनुसार स्थान देता है और उनकी विशेषताओं से पूरा वातावरण चित्रित करता है। ज्ञाताधर्मकथा के पात्र पौराणिक एवं ऐतिहासिक हैं। फिर भी वे कथा के सूत्र में बंधे हुए व बोलते हुए दिखाई पड़ते हैं। पूरा का पूरा परिवेश पात्रों की परिस्थितियों से घिरा हुआ घटित घटनाओं को उभारने में सफल होता है। ज्ञाताधर्म के कथानकों में जो भी वातावरण है वह पाठक की मनःस्थिति को प्रभावित किए बिना नहीं रहता है। जबकि वर्तमान समाज व्यवस्था से जुड़े हुए परिवेश के कथानक हल्की-हल्की सांस लेते हुए विकास को तो प्राप्त करते हैं पर अपनी छवि को नहीं छोड़ पाते हैं, यदि कुछ छोड़ते भी हैं तो वे सारी विशेषताओं के अभाव में 1. ज्ञाताधर्मकथांग 4/10. 2. वही, 16/96. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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