Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 90 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन नगण्य ही है। परन्तु ज्ञाताधर्मकथा के पात्र की सारी परिस्थितियाँ सत्य का उद्घाटन करती हैं। परिणामत: कथानकों में भारतीय भौगोलिक परिस्थितियों, राजनैतिक विचारों, धार्मिक प्रभावों एवं सामाजिक उद्देश्यों का चित्र उभरकर आया है जिसे समग्र भारतीय संस्कृति का चित्र कहा जा सकता है। उत्क्षिप्तज्ञात नामक अध्ययन में अभयकुमार का चरित्र, धारिणी, स्वप्न दर्शन, दोहद वर्णन अकाल मेघ क्रिया, मेघकुमार की कला आदि कई अंश उस समय के देश-काल की परिस्थितियों को उपस्थित करते हैं। संघाट नामक द्वितीय अध्ययन में धन्यसार्थवाह का वैभव, पत्नी भद्रा की भद्रता, विजय चोर की निपुणता आदि अलग-अलग परिवेश को व्यक्त करते हैं। मयूरी के अण्डे, पक्षियों के प्रति अहिसंक भावना, कूर्म जलचर जीव से संयम भावना, शैलक में नगरी, पर्वत, जनपद आदि का विवेचन श्रीकृष्ण के समकालीन परिवेश को प्रस्तुत करते हैं। इसी तरह से दर्दुर नामक तेरहवें अध्ययन में चिकित्सा पद्धति का वर्णन प्राचीनता की ओर ले जाती है। द्रौपदी नामक सोलहवाँ अध्ययन हस्तिनापुर नगर के परिवेश से जुड़े हुए पात्रों का जो विवेचन करता है वह ऐतिहासिक है। अत: देशकाल की दृष्टि से जो सामाजिक, प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं पौराणिक चित्रण हुआ है वह तत्कालीन वेश-भूषा, भाषा, आहार-विहार, रीति-रिवाज, कला, व्यापार, नगर-वातावरण आदि को प्रभावी बनाता है। ज्ञाताधर्म में जो कुछ भी चित्रित किया गया है वह तत्कालीन सामाजिक परिवेश की यथार्थता को उद्घाटित करता है। साथ ही पौराणिक एवं ऐतिहासिक मान्यताओं का सजीव चित्रण भी करता है। .5. भाषा शैली काव्य साहित्य में वैदर्भी, गौड़ी और पांचाली ये तीन शैलियाँ कही गयी हैं। वैदर्भी रीति में ओज, प्रसाद आदि गुणों का समावेश होता है। ओज और कांति को गौड़ी रीति में समाहित किया गया है तथा सुकुमारता एवं मधुरता पांचाली रीति में आती है। ज्ञाताधर्मकथा में ध्वनि, गुण रीति शब्द-योजना के अतिरिक्त अनेक ऐसे बिम्ब विद्यमान हैं जो कथाशिल्प को प्रमाणित करते हैं। इससे ही कथा आकर्षक और रोचक बन सकी है। इसी से कथ्य, तथ्य एवं वस्तु रहस्य का भाव स्पष्ट हो सका है और यही भाव जिज्ञासा उत्पन्न कर उत्सुकता जगाने में समर्थ हुआ है और इसी से कथा आकर्षक एवं रोचक बन सकी है, उदाहरण के लिए प्रथम अध्ययन में अभयकुमार के विवेचन को सामने रखा जा सकता है जिसमें अभयकुमार की सुझबूझ, बुद्धि कौशल आदि से उद्घाटित झलकियाँ देखी जा सकती हैं। अभयकुमार 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 16/112. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org