Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन . 85 चरित्र-चित्रण की विधाएँ 1. पात्रों के कार्यों द्वारा। 2. पात्रों के वार्तालाप द्वारा 3. कथाकार के कथन और व्याख्या द्वारा। उक्त तीनों ही प्रकार के गुणों का विवेचन ज्ञाताधर्मकथा में है। पात्रों के कार्यों के लिए प्रथम अध्ययन, आठवाँ अध्ययन, चौदहवां अध्ययन और सोलहवां अध्ययन है। इन अध्ययनों में पात्रों के कार्यों के माध्यम से चरित्र-चित्रण किया गया है। जैसेपुरुष सहस्त्र-वाहिनी शिविका के सामने अष्टमंगल' द्रव्यों का प्रदर्शन, स्तुति, जयनाद, मांगलिक वातावरण आदि मेघकमार जैसे महान नायक के आदर्श को प्रस्तुत करता है। मेघकुमार के तपश्चरणरे के समय का दृश्य भी इसी तरह का है। पात्रों के वार्तालाप द्वारा नाटकों में वस्तुस्थिति को व्यक्त किया जाता है। ज्ञाताधर्मकथा नाटक नहीं है फिर भी इसमें नाटकीय प्रयोग किये गये हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भ में पात्रों की बातचीत से इस बात का संकेत मिलता है। ज्ञाताधर्म के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय अनुच्छेद में यही क्रम देखने को मिलता है। रोहिणीज्ञात में चारों बहुओं के साथ सेठ का वार्तालाप पात्र की विशेषता को चित्रित करता है और गुण विशेष के आधार पर सेठ अपने बहुओं का नाम उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी रखता है। उज्झिका को सफाई कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है, भोगवती को रसोईघर का कार्य दिया जाता है, रक्षिका को वस्तुओं की देखरेख के लिए रखा जाता है और रोहिणी को गृहस्वामिनी के रूप में नियुक्त किया जाता है। वस्तु स्थिति व पात्रों की स्थिति क्या है? कैसी है? ये चारों ही नारी पात्र व्यक्त कर देती हैं। कथाकार कथा कभी कहता है, कभी कहलवाता है और कभी पात्रों के विचार भावना, उद्देश्य, प्रयोजन आदि के द्वारा उन्हें प्रस्थापित करता है। ज्ञाताधर्मकथा का कथाकार कथां में नहीं उलझता है, अपितु कथन को महत्त्व देता है। यदि उसे अनिष्ट का आख्यान करना है तो अनिष्ट के वातावरण को किसी पात्र के माध्यम से उपस्थित कर देता है और यदि योग, भक्ति, श्रद्धा, तप आदि इष्ट कार्यों को व्यक्त करना है तो वह अनुकूल वातावरण उपस्थित कर वस्तुस्थिति का चित्रण कर देता है। कथाकार की यही कथा परिणति है। . उक्त विधियों के अतिरिक्त चरित्र-चित्रण की दो विधियाँ व्यक्त की गयी हैं 1. ज्ञाताधर्मकथांग- 1/153, 154. 2. वही, 1/202. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org