Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 84 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन तथ्यों का ज्ञान भी होता है। द्रौपदी के वर्णन से हस्तिनापुर के पाण्डुराजा एवं अन्य कई विशिष्ट व्यक्तित्व के ऐतिहासिक प्रमाण स्पष्ट होते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय की नारियाँ शील और तप की आराधना करनेवाली थीं। (ख) एकरूपता चरित्र-चित्रण की दृष्टि से अनेकता में एकता और एकता में अनेकता आवश्यक है। ज्ञाताधर्म की मूल कथाओं में जो कुछ भी समावेशित किये गये वे अनेक प्रकार के परिवर्तनों को अपने में समाहित किये हुए भी एक ही उद्देश्य को प्रस्तुत करते हैं जिसे सामान्य रूप में संसार की स्थिति से हटकर विशुद्धात्म भाव की ओर बढ़ना ही कहा जा सकता है। द्रौपदी के चित्रण में संसार से वैराग्य की ओर का चरित्रचित्रण ही पर्याप्त है। इसी से अन्य चरित्र-चित्रण का ज्ञान हो सकता है। द्रौपदी का जन्म राजसी परिवेश में हुआ, अत: तदनुकूल नवयौवना होने पर उसका स्वयंवर रचाया गया जिसमें पाण्डुपुत्र आए और उनके साथ वरण हुआ। कथा में द्रौपदी हरण जितना महत्त्वपूर्ण है उससे कहीं अधिक द्रौपदी का साध्वी होना महत्त्वपूर्ण है। ज्ञाताधर्म में प्रारम्भिक कथानक से लेकर अन्त तक के सभी कथानक भाषा, भाव, अभिव्यक्ति, कला, चित्रण-विधि, उपदेशात्मक ज्ञान एवं विशेष उद्देश्य आदि को किसी न किसी रूप में स्पष्ट करते हैं। (ग) सम्भाव्य ज्ञाताधर्म के कथानक कल्पनाशील नहीं हैं, अपितु ये कलाकार की प्रतिमूर्ति के सजीव चित्र हैं। इसके सुन्दर चित्रों में जीवन का यथार्थ है। मल्ली के प्रसंग सम्भाव्य को प्रस्तुत करते हुये तप संयम के सौन्दर्य की स्थापना करते हैं। कूर्म अध्ययन में दो प्रकार की प्रतिकृति सामने आयी है। जिसमें प्रथम प्रतिकृति वाचालता को व्यक्त करती है और द्वितीय कलाकार के सर्वश्रेष्ठ निष्कर्ष को प्रस्तुत करती है। यही कला का सौन्दर्य है जिसमें घटित घटना सम्भाव्य को स्थित करती है। चरित्र-चित्रण के कई केन्द्रबिन्दु हैं जिनमें बुद्धि और कल्पना क्रियाशील होती हैं। ज्ञाताधर्म में कल्पना नहीं है, इसलिए कल्पना की क्रियाशीलता इसमें नहीं है। परन्तु बुद्धितत्त्व है जिससे हृदय की अनुभूतियाँ न केवल मानवीय संवेदनाओं को लेकर आगे बढ़ती हैं, अपितु प्राणीमात्र के पूर्वापर परिचित प्रतिबिम्ब का भी छायांकन करती हैं। 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 16/108. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org