Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 83 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन साहस-कायरता, औदार्य-कंजूसी, न्याय-पक्षपात, सौन्दर्य-असौन्दर्य, वीरता-भद्रता, दयालुता, नृशंसता, सत्य-असत्य आदि देश-काल सापेक्ष गुण को लेकर समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्ञाताधर्मकथा के कथानकों के साथ जुड़े हुए अन्य कथानक भी इसी बात का प्रमाणित करते हैं। चरित्र-चित्रण का औचित्य चरित्र-चित्रण को उत्कृष्ट एवं आदर्शरूप में प्रस्तुत करने का कार्य ज्ञाताधर्मकथा में सर्वत्र किया गया है। अभयकुमार श्रेणिक राजा के समीप में जैसे ही पहुंचता है वैसे ही श्रेणिक उसे आदर देते हैं, साता-असाता पूछते हैं, सत्कार-सम्मान करते हैं तथा आलाप-संलाप आदि करके आशीष देते हैं। साथही बदली हुई मनोगत स्थिति को भी इसी के उपरान्त दर्शाया गया है। जिसमें अभयकुमार व्यक्त करता है कि हे तात! जो आदर सम्मान. आप पूर्व में देते थे, वह अब क्यों नहीं हैं? इसका क्या कारण है?२ श्रेणिक की उदासीनता को जानकर अभयकुमार निवेदन करता है कि आप जिस संकल्प को लिए हुए हैं. उसे पूर्ण करना मेरा कार्य है। अत: आज्ञा दीजिए कि मैं छोटी माता धारिणी देवी के दोहद को सम्पन्न करके सेवा का अवसर प्राप्त कर सकू।३ बदलती हुई मनोगत स्थिति की यह परिणति संकल्प के भावों को सपष्ट करती है। . चरित्र-चित्रण की उत्कृष्टता के अनेक मापदण्ड ज्ञाताधर्म में हैं जिनके औचित्य को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है(क) अनुरूपता जीवन्त पात्रों के चरित्र से कुछ कहलवाना अनुरूपता है। ज्ञाताधर्म में पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही प्रकार के पात्र हैं और वे अपने जीवन्त स्वरूप को जनता के बीच में उपस्थिति कर भद्रता, अभद्रता, ठगी, आसक्ति, त्याग, तपस्या, आत्मसन्तोष, परिजन शिक्षा आदि का चित्रण करते हैं। सुधर्मा और जम्बू जैसे पात्र पुराण कथा को व्यक्त करते हैं तथा मेघकुमार, राजा कुणिक, श्रेणिककुमार, अभयकुमार, धारिणी, द्रौपदी; आदि ऐतिहासिक पात्र प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को साकार करते हैं। अरिष्टनेमि का चरित्र-चित्रण द्वारका नगरी की ऐतिहासिकता, प्रमाणों तथा पुराण-पुरुषों की गाथा का निरूपण करता है। आठवें अध्ययन में भी दोनों ही प्रकार के चरित्र उभरकर आए हैं। उदकज्ञात नामक बारहवें अध्ययन में राजा जितशत्रु के विषय में ऐतिहासिक . 1. ज्ञाताधर्मकथांग 1/60. 2. वही, 1/61. 3. वही, 1/162. 4. वही, 5/1-11. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org