Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 81 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन जिज्ञासा ही बनी रहती है। द्रौपदी कौन थी, वह किसकी पुत्री थी, उसका क्या नाम था, उसका विवाह किसके साथ हुआ, कैसे हुआ, उसका अपहरण, उसकी खोज, उसका मिलन एवं उसके द्वारा दीक्षा आदि घटनाएँ जिज्ञासा ही उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार ज्ञाताधर्म के कथानक विविध प्रकार के सिद्धान्तों को गति प्रदान करते हुए मानव जीवन के विविध पक्षों को भी प्रस्तुत करते हैं। इनकी अभिव्यक्तियाँ उच्च, मार्मिक, महान, सशक्त, प्रखर, जीवन्त एवं गहराई को लिए हुए हैं, जो यथार्थता के साथ आदर्श के तत्त्व भी प्रस्तुत करने में समर्थ हैं। चरित्र-चित्रण कथा की घटनाएँ एवं कथा प्रसंग मानवीय, दैवीय एवं प्राणी जगत के चित्रण से चित्रित होती हैं। मानव मन कथा का प्राण होता है, जिनको लेकर घटनाओं को घटित किया जाता है। घटनाएँ पात्रों के बिना सम्भव नहीं हैं। पात्रों के चरित्रचित्रण भिन्न-भिन्न परिस्थितियों एवं वातावरण की विशेषताओं को भी अंकित करनेवाले होते हैं। कथाकार का कर्तव्य है कि वह चरित्र के उत्कृष्ट आदर्श को प्रस्तुत करे। वह चरित्र को सजीव, निर्दोष, सदभाव और भद्र बनाए तथा अभद्र को मापदण्ड बनाकर वस्तु स्थिति का चित्रण करे। चरित्रगत भद्रता तो प्रत्येक वर्ग में पायी जाती है, इसके लिए पात्रों को किसी वर्ग विशेष से ही खोजना आवश्यक नहीं है। 2 . ज्ञाताधर्म में चरित्र-चित्रण की सबसे बड़ी विशेषता यही देखने को मिलती है कि जैसा हम जीवन में देखते हैं वैसा ही पात्र बोलते हुए प्रतीत होते हैं। इससे यथार्थ में आदर्श और आदर्श में यथार्थ का समावेश हो जाता है। इससे प्रत्येक पात्र जीवन को प्रेरणा देने वाले बन जाते हैं। निराशावादी दृष्टिकोण वपित नहीं हो पाता है। इसलिए आज भी पात्रों के चरित्र-चित्रण असामाजिक बुराईयों के अन्त व निर्दोष चरित्र की प्रस्तुति में सहायक हैं। चरित्र-चित्रण की विशेषताएँ मौलिकता, स्वाभाविकता, अनुकूलता, सजीवता, सहृदयता, उज्ज्वलता, प्रतीकात्मकता, गतिशीलता, मनोविज्ञान-सम्मत, वर्णनात्मकता, चरित्रहीनता, चरित्रमहानता, ईर्ष्या, हिंसात्मक, अहिंसात्मक, सत्यनिष्ठा, त्यागभावना, संयमभावना, ब्रह्मचर्यभावना, नैतिक जगरण (राजा का कर्तव्य, प्रजा का कर्तव्य, सेवाभाव, दया, करुणा), धार्मिक भावना, वैराग्य भावना, निन्दा-पश्चाताप आदि इसकी विशेषताएँ हैं 1. ज्ञाताधर्मकथांग 17/148. 2. हिन्दी उपन्यास, सिद्धान्त और समीक्षा, पृ० 59, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1966. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org