Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 50. ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन जो स्वप्न देखे हैं उनका फल क्या है? श्रेणिक ने स्वप्नों का समाधान करते हुए कहा है- हे देवानुप्रिय! तुमने जो स्वप्न देखे हैं वे कल्याणकारी हैं। स्वप्नों के फल को सुनकर वे हर्षित हुईं। तत्पश्चात् कुलदेवता का पूजन करती हुई गर्भ को धारण किया और प्रसन्नमना दोहद को प्राप्त हुईं। दोहद की पूर्ति अभयकुमार द्वारा करायी गई। निश्चित समय पर रानी धारिणी ने पत्र को जन्म दिया जिसका नाम मेघकुमार रखा गया। वह भी धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त हुआ और यौवनावस्था में 72 कलाओं में निपुण होकर राजकुमार पद पर प्रतिष्ठित हुआ। मेघकुमार युवावस्था को प्राप्त होने पर जन-जन का प्रियं बन गया। उसका बाग्दान राजकुल की आठ राजकन्याओं के साथ हुआ और वह कामभोगों को भोगता हुआ राजगृह के सुन्दर प्रासाद में रहने लगा। एक दिन राजगृह में श्रमण भगवान महावीर का आगमन हुआ। कंचुकी ने यह सूचना कुंवर को दी। कुंवर तीर्थ वन्दना हेतु वहाँ गये तथा महावीर की देशना सुनकर चारित्रधर्म की ओर अग्रसर हो गये। धर्म श्रवण से उनके मन में निर्ग्रन्थ बनने के भाव जागृत हुए और उन्होंने तत्काल माता-पिता के पास आकर अपने संकल्प का उनसे निवेदन किया। मेघकुमार की धर्म के प्रति रुचि देखकर माता-पिता दीक्षा देने में बाधक नहीं बने। उन्होंने सहर्ष आज्ञा दे दी। माता तो माता ही होती है चाहे वह किसी की क्यों न हो। पुत्र के गृहत्याग पर शोक करती ही है, परन्तु मेघकुमार के भावों के सामने माता धारिणी नम्रीभूत हो गईं और दीक्षा के लिए अनुमति दे दी। ____ मेघकुमार के जीवन की यह अपूर्व घटना थी। कथाकार ने इस कथा में इनके तीन जन्मों का अपूर्व दर्शन कराया है। इसमें मेघकुमार के पूर्व के दो भवों का भी उल्लेख है। तीसरा भव मेघकुमार का था। पूर्व के प्रथम भव में मेघकुमार जंगली हाथी की पर्याय में था। हाथी जंगल की आग की चपेट में आ गया। प्राण रक्षा के लिए इधर-उधर भटकता हुआ सरोवर के पास पहुँचा। गर्मी, भूख, प्यास से व्याकुल था, अत: पानी पीने के लिए सरोवर में उतरा। अधिक कीचड़ होने के कारण उसमें फंस गया। बाहर निकलने का प्रयास किया, परन्तु निकलने में समर्थ नहीं हो पाया। विवश, लाचार एवं असहाय अत्यन्त वेदना को प्राप्त हुआ। उसी समय एक दूसरा हाथी वहाँ आया। कीचड़ में फँसे हाथी को देखकर उसे पूर्व वैर का स्मरण हो आया। उसका क्रोध बढ़ गया और उसने आर्त परिणामों से युक्त होकर जंगली हाथी की पीठ पर नुकीले दाँतों से प्रहार किया। फलतः उसने अत्यन्त वेदनायुक्त होकर प्राण त्याग दिये और पशुगति को प्राप्त हुआ अर्थात् पुन: हाथी के रूप में जन्म लिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org