Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 62 / ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन समुद्र से जब मैं तुम्हें ले जा रहा होऊ तब उस देवी द्वारा अनेक प्रलोभन दिए. जाने पर भी तुम विचलित नहीं होओगे तो मैं तुम्हें सुरक्षित स्थल पर पहुंचा दूंगा। दोनों शैलक के पीठ पर आरूढ़ होकर लवण समुद्र से जब जा रहे थे तब अवधिज्ञान से जानकर देवी ने तीव्र गति से इनका पीछा करते हुए अनेक प्रलोभनों और करुणाजनक शब्दों का प्रयोग किया। जिनपालित तो उस विलाप से अविचल रहा परन्तु जिनरक्षित के मन में उस देवी के प्रति मोह जाग उठा। शर्त के अनुसार यक्ष ने जिनरक्षित. को अपनी पीठ से गिरा दिया और जिनपालित को सुरक्षित चम्पानगरी पहुंचा दिया। जिनपालित अपने घर में प्रवेशकर माता-पिता से मिला एवं सम्पूर्ण घटनाक्रम को सुनाया। कुछ समय पश्चात् जिनपालित ने चम्पानगरी में भगवान महावीर के आगमन पर उनसे प्रतिबोधित हो संयम ग्रहण किया और एक मास का अनशन कर देवरूप में उत्पन्न हुआ। माकन्दी में वनखण्ड के बचाने का जो भाव है वह आधुनिक पर्यावरण की अपूर्व शिक्षा देता है। इसी अध्ययन में मनुष्य की मानसिक स्थिति का जो बोध कराया गया है वह भी मानसिक प्रदूषण, वाचिक प्रदूषण एवं शारीरिक प्रदूषण की दशाओं को व्यक्त करता है। जो व्यक्ति इन तीनों से प्रदूषित होता है वह कहीं भी किसी भी तरह से बच नहीं पाता है। उसकी विकल्प युक्त क्रियाएं उसे इस पार से उस पार ले जाने में भी समर्थ नहीं होती हैं। परन्त जो व्यक्ति आज्ञा, वचन और निर्देश का पालन करके कार्य करता है वह उपद्रवों से रहित होकर विचरण करता है। कर्मयोग से अशुभ वर्गणा कभी-कभी प्रभावशाली बन जाती है पर उसका प्रभाव क्षणिक असाता उत्पन्न करके पुन: साताकर्म की ओर ले जाता है। चिन्तनशील व्यक्ति तिरता है, विकल्पयुक्त सहारा पाकर भी बेसहारा हो जाता है, यही इस अध्ययन का मूल उद्देश्य है। 10. चन्द्र दशम अध्ययन में कथाकार ने जीवों के विकास और पतन को चन्द्रमा के दृष्टान्त द्वारा प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार चन्द्रमा कृष्णपक्ष में अत्यन्त काला होता है उसी तरह व्यक्ति के विचार अत्यन्त प्रदूषित होते हैं। विचार प्रदूषित होने से क्षमा, शील, संयम, तप, ज्ञान, ध्यान, ब्रह्मचर्य आदि के योग में उसकी प्रवृत्ति नहीं होती। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org