Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 68 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन - मूलत: इस अध्ययन का उद्देश्य पाँच अणुव्रत, सात 'शिक्षाव्रत आदि श्रावकों के बारह व्रतों का वर्णन करके संयम साधन का निरूपण करना है। . 15. नन्दीफल पन्द्रहवें अध्ययन में इन्द्रियों से सावधान रहने की शिक्षा दी गई है। चम्पानगरी में धन्य सार्थवाह नामक व्यापारी रहता था। एक बार उसने व्यापार हेतु अहिच्छत्रा जाने का निश्चय किया तथा उसने नगर में यह घोषणा करवायी कि जो-जो व्यापार हेतु अहिच्छत्रा जाना चाहे वह मेरे साथ चले। उसकी सभी आवश्यकता पूर्ति मैं करूंगा, व्यापार हेतु पैसा दूंगा एवं हर संभव सहायता करूंगा।' .. रास्ते में आने वाले कष्टों, उपसर्गों, परिस्थितियों को सामने रखकर तदनुसार व्यवस्था कर धन्य सार्थवाह अपने सहयोगियों के साथ रवाना होकर एक विशाल अटवी में रात्रि विश्राम हेतु रुका। उस अटवी में वृक्ष के फल विषैले थे एवं आवागमन नहीं था। धन्यसार्थ ने उन फलों को देखते ही किसी से फल न खाने की चेतावनी दे दी। परन्तु कुछ ऐसे भी थे जो उन दूर से मनोहर दृष्टिगत होने वाले फलों को खाने का लोभ संवरण नहीं कर सके और मृत्यु को प्राप्त हो गये। जो बचे वे सकुशल अपने घर लौटे। यह अध्ययन नंदीफल के वृक्षों के संरक्षण पर विशेष बल देता है। नन्दीफल नामक वृक्ष विष वृक्ष के रूप में प्रसिद्ध है। जो व्यक्ति इसका मूल कन्द, छाल, पत्र, पुष्प, फल आदि खाता है या इसकी छाया में ठहरता है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। यह संकेत इस बात को सिद्ध करता है कि वृक्षों की कई प्रकार की प्रजातियाँ होती थीं उनमें कुछ विषवृक्ष भी होते थे। जिस तरह विषवृक्ष के पत्तों के भक्षण से जीवन दु:खमय बन जाता है उसी तरह इष्ट मनोगत भावों को न छोड़नेवाला व्यक्ति दु:खी होता है। 16. अमरकंका __सोलहवें अध्ययन में साधारण लाभ से दारुण कर्मों के बंध का वर्णन है। महासती द्रौपदी के पूर्व भव से इस अध्ययन का प्रारम्भ होता है। चम्पानगरी में नागश्री नामक एक ब्राह्मणी रहती थी। एक बार नागश्री ने अपने परिवार के लिए तुम्बे का शाक बनाया। चखने पर ज्ञात हुआ कि वह अत्यन्त विषाक्त है। पारिवारिक उपालम्भ से बचने के लिए उसने उस सब्जी को छिपाकर दूसरी सब्जी बना दी। इसी बीच धर्मरुचि नामक अणगार एक माह की तपस्या के बाद पारणे के निमित्त नागश्री ब्राह्मणी के घर आए। महाकपट एवं नागश्री नाम को सार्थक करनेवाली उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org