Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 74 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन नवम वर्ग एवं दसम वर्ग में वैमानिक निकाय के सौधर्म एवं ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों का वर्णन है। इन सबका वर्णन इनके पूर्वभव के रूप में है जिसमें ये महिला रूप में उत्पन्न हईं, दीक्षा अंगीकार की, परन्तु चारित्र से च्यूत हो गयी और अंतिम समय में दोषी की आलोचना किये बिना ही मरण को प्राप्त हो गयीं। ये सभी पुन: मनुष्य भव प्राप्त कर सिद्ध बुद्ध एवं मुक्त होंगी। * इस प्रकार द्वितीय श्रुतस्कन्ध में जो दस वर्ग हैं उनसे साधक की भूमिका का बोध होता है क्योंकि साधक की श्रेणियाँ अर्थात् वर्ग महाव्रतों के कारण ही विभाजित किए जाते हैं। इसलिए द्वितीय श्रुतस्कन्ध में काली नामक एक देवी थी जो केवल कल्प प्राप्त करके अवधिज्ञान को प्राप्त हुई थी। काली के इस विवेचन से महाव्रती के.लिए यह शिक्षा दी गयी है कि व्यक्ति महाव्रतों का पालन करके विधिवत कर्मों का क्षय कर सकता है और उसी से निर्वाण प्राप्त हो सकता है। इसी तरह रजनी, विद्युत, मेघा आदि के प्रसंग से धर्म के स्वरूप को प्रतिपादित किया गया है। इसके द्वितीय वर्ग में सूंभा, निसुंभा, रम्भा, निरम्भा और मदना की सांसारिक नाट्य क्रियाओं से यह शिक्षा दी गयी है कि जो व्यक्ति आत्म-कल्याण करना चाहते हैं वे उपासना को सर्वोपरि बनायें। इसी के तृतीय वर्ग में नय और निक्षेप का संकेत करके तत्त्वज्ञान का बोध कराया गया है। चतुर्थ वर्ग से सिद्धि प्राप्ति का हल बतलाया गया है। पंचम वर्ग में बत्तीस देवियों के नामों का उल्लेख दिव्य कन्याओं के रूप में किया गया है, अत: जो व्यक्ति दिव्य होना चाहता है वह दिव्य गुणों का ध्यान करे तभी दिव्य बन सकता है। इसी तरह के छठे, सप्तम, अष्टम, नवम और दशम वर्ग में यही कथन किया गया है कि जो दुःख का अन्त करता है वह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org