Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु 61 यह दिव्य साधना के गुणों को चित्रित करने वाला अध्ययन है जो नारी मल्ली की तरह उत्कृष्ट तप करती है वह निश्चित ही संसार से जन्म, जरा और मरण जैसे दुःखों को नष्ट करके मुक्ति पथ की अनुगामिनी बनती है। 9. माकन्दी नवें अध्ययन में ‘एगे जिए, जिया पंच' अर्थात् एक आत्मा पर विजय प्राप्त करने पर शेष पाँचों इन्द्रियों को आसानी से जीता जा सकता है। इसमें यही उपदेश प्रतिपादित है। चम्पा नगरी में माकन्दी सार्थवाह एवं भद्रा भार्या के दो पुत्र जिापालित एवं जिनरक्षित थे। युवावस्था में दोनों पुत्र व्यापार हेतु ग्यारह बार लवण समुद्र की यात्रा करने के पश्चात् बारहवीं बार पुन: यात्रा करने के लिए रवाना हुए। सैकड़ों योजन समुद्र में चलने के पश्चात् समुद्री तूफान में सभी जहाज नष्ट हो गए। किसी तरह दोनों सार्थपुत्र लकड़ी के पटिए के सहारे रत्नद्वीप पर पहुंचे। उस द्वीप पर एक अति पापिनी भयंकर देवी का निवास था। अवधिज्ञान से उस देवी ने जब दोनों पुत्रों को देखा तो समीप आकर उन्हें अपने साथ भोग भोगने का निमन्त्रण दिया। उसकी आज्ञा को शिरोधार्य कर दोनों पुत्र विपुल भोग भोगने लगे। एक बार लवण समुद्र के अधिपति देव द्वारा इस देवी को समुद्र की सफाई हेतु नियुक्त किया गया। देवी ने कार्य पर जाने के पूर्व दोनों सार्थवाह पुत्रों को दक्षिण दिशा में जाने का निषेध करते हुए अन्य सभी दिशाओं में आमोद-प्रमोद करने का आदेश दिया। मानव स्वभाव है कि जिस चीज का निषेध होता है व्यक्ति उसी ओर जाने को उत्सुक होता है। इसी प्रवृत्ति के वशीभूत होकर कुछ समय पश्चात् वे दोनों उत्सुकतावश दक्षिण दिशा में पहुंचे। कुछ दूरी पर उन्हें एक करुण क्रन्दन करते हुए एवं सूली पर चढ़े हुए पुरुष से भेंट हुई। उसने बताया कि इसी देवी ने मुझे ग्रहण कर विपुल भोग भोगने हेतु साथ रखा एवं एक छोटे से अपराध के लिये मुझे यह दण्ड दिया है। सार्थपत्रों ने जब उसकी असह्य वेदनापूर्ण घटनाक्रम को सुना तो उनका हृदय अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो गया। घबराकर उन्होंने उस पुरुष से वहाँ से निकलने का उपाय पूछा। वृद्ध पुरुष ने कहा पूर्व दिशा की ओर एक अश्वधारी शैलक नाम का यक्ष रहता है। वह यक्ष विशिष्ट तिथियों को निश्चित समय पर किसे तारूं किसे पालू यह घोषणा करता है। दोनों भाई शीघ्रता से पूर्व दिशा में जाकर उस यक्ष से तारने व पालने का अनुनय-विनय करने लगे। शैलक ने एक शर्त के साथ उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया कि लवण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org