Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ चतुर्थ अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु विषयवस्तु के स्त्रोत जैन साहित्य के प्राचीनतम आयाम आगम हैं जिसमें जीवन का समरसता का सार है। इसमें ज्ञातृपुत्र महावीर द्वारा उपदिष्ट/प्ररूपित धर्मकथाओं का निरूपण होने से इस ग्रन्थ का नाम ज्ञाताधर्मकथांग पड़ा है। इसकी गणना जैनागम साहित्य के प्राचीन अंग आगमों में की गयी है। ज्ञाताधर्मकथांग को प्राकृत में 'नायाधम्मकहाओ' तथा संस्कृत में 'ज्ञातृधर्मकथा/ज्ञाताधर्मकथा' नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रन्थ दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है- प्रथम श्रुतस्कन्ध में उन्नीस कथांश है एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध में दस वर्ग है। नन्दीसत्र में कहा गया है कि इसके द्वितीय श्रुतस्कन्ध की प्रत्येक वर्ग की धार्मिक मर्म से संबंधित 500-500 आख्यायिकाएँ हैं और एक-एक आख्यायिका में 500-500 उप-आख्यायिकाएँ हैं और एक-एक उप-आख्यायिका में 500-500 आख्यायिकोपख्यायिकाएँ हैं, पर वे सभी कथाएँ आज उपलब्ध नहीं हैं। ज्ञाताधर्मकथांग के वर्तमान संस्करणों के प्रथम श्रुतस्कन्ध में उन्नीस कथाएँ तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध में दो सौ छ: कथाएँ निरुपित हैं।३ ज्ञाताधर्मकथांग की कथाएँ आध्यात्मिक, समुत्कर्ष, आत्मा-परमात्मा, समत्वदर्शन, ज्ञान-विज्ञान और कर्म जैसे दार्शनिक पहलुओं को व्यक्त करती है। इसमें उल्लेखित उदाहरण प्रधान रूप से नीतितत्त्व, जीवन-मूल्य, सद्विचार, सदाचरण, सद्बोध, सद्-ज्ञान, समता, समभाव, ज्ञानदर्शन एवं चारित्र के उत्कृष्ट मार्ग को प्रशस्त करती हैं। ज्ञाताधर्मकथांग की विषय वस्तु ज्ञाताधर्मकथांग अंग आगम साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें मुख्य रूप से भगवान महावीर द्वारा देशित उन कथाओं का संकलन है जो समय-समय पर उन्होंने अपने शिष्यों को कर्तव्य बोध कराने के लिये प्ररूपित किया था। इसकी 1. जैन जगदीशचन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० 80... 2. ज्ञाताधर्मकथांग, मुनि मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज०), पृ०-४. 3. वही, भूमिका, आचार्य देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ०-६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org