Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 56 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन थी और उनका पुत्र मंडुक था। शैलक के पाँच सौ मंत्री थे। जो शासन का संचालन करते थे। उसने श्रावक के व्रतों को ग्रहण कर लिया। उसी समय शुक नामक परिव्राजक का आगमन हुआ। शुक की धर्मदेशना सुनकर कई श्रावक सांख्यमत में रुचि रखने लगे। सुदर्शन नामक व्यक्ति भी परिव्राजक धर्म की ओर अग्रसर हुआ। ___ थावच्चापत्र का अणगार रूप में उसी नगर में आगमन हुआ जहाँ सुदर्शन भी शौच धर्म को महत्त्व दे रहा था। थावच्चा एवं सुदर्शन का आपस में विवाद होता है। थावच्चा मिथ्यादर्शन का निषेध करता है और उपदेश देता है कि जो व्यक्ति जीव, अजीव आदि तत्त्वों पर श्रद्धान करता है वह सच्चे धर्म का उपासक होता है। शुक परिव्राजक पुन: उस नगरी में आता है जहाँ उसका सच्चा श्रावक सुदर्शन भी रहता था। उसने उस शुक परिव्राजक को सम्मान नहीं दिया। यह सब उसे ज्ञात हुआ तो वह भी थावच्चा के समीप आया और बोध प्राप्त करके मुनि पद धारण कर लिया। शैलक राजा भी मुनि पद पर प्रतिष्ठित होकर धर्मध्यान करने लगे परन्तु कर्मयोग से शैलक रोग से पीड़ित हो गये। चिकित्सकों को बुलाया गया उन्होंने मद्यपान आदि अभक्ष सेवन को कहा और वे उसमें आसक्त हो गये। शैलक को छोड़कर अन्य साधु धर्ममार्ग पर चलते रहे परन्तु शैलक नहीं। पुनः राजा शैलक को बोध प्राप्त हआ और परिव्राजक मत एवं अभक्ष भक्षण छोड़कर संयममार्ग की ओर लग गये। संसार में जो व्यक्ति जन्म लेता है वह संसार की मोह माया से नहीं बच सकता। उसे नाना प्रकार के मत-मतान्तर का भी सामना करना पड़ता है परन्तु जो श्रमण या साध्वी, श्रावक या श्राविका सच्चे धर्म के स्वरूप को समझकर तत्त्व श्रद्धान करते हैं वे मुक्तिपद को प्राप्त करते हैं। शैलक अध्ययन में मूलत: शिथिलाचार पर विवेचन किया गया है जो व्यक्ति अपने मार्ग से विचलित हो जाता है वह मद्यपान जैसे निन्दनीय कार्य में भी लग जाता है, परन्तु जो व्यक्ति धर्म के प्रति आस्थावान होता है वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धर्म चेतना को प्राप्त कर लेता है। 6. तुम्बक छठा अध्ययन गुरुता और लघुता के विषय को प्रतिपादित करता है। यथार्थ में तुम्बक कड़वी होती है। वह सूखकर हल्की हो जाती है। व्यक्ति सूखे हुए तुम्बक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org