Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 54 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन प्रसिद्धि होती है। प्रस्तुत अध्ययन में श्रद्धा और विश्वास की जीत होती है। अश्रद्धा और अविश्वास परास्त होता है। जो व्रती साधना में लीन होकर तत्त्व श्रद्धान करते हैं वे नाना प्रकार की कलाओं में निपुण हो जाते हैं और वही तप, संयम आदि के मार्ग पर चलते हुये जीव रक्षा में सहायक बनते हैं। अश्रद्धालु संसार के चक्र में फंसकर दुःख ही भोगते हैं। 4. कूर्म . चतुर्थ अध्ययन में दो कछुओं और दो शृगालों के परिणामों का सुन्दर विवेचन है। कथाकार ने वाराणसी नगरी के वैभव को व्यक्त करने के पश्चात् गंगा नदी के मृतगंगातीर नामक तालाब के सौन्दर्य का अत्यन्त ही रमणीय विवेचन किया है। वाराणसी नगर का यह तालाब कमल-कमलिनियों से परिपूर्ण तथा जलचर जीवों से युक्त था। मृतगंगातीर का एक बड़ा भाग मालुकाकच्छ था। उस कच्छ में दो पापी शृगाल रहते थे। वे दिन में छिपे रहते थे और रात्रि को मांस की इच्छा से बाहर निकलते थे। एक दिन वे दोनों पापी शृगाल मृतगंगातीर के किनारे आए। वहाँ आहार की खोज करने लगे तभी उनकी दृष्टि दो कूर्मकों पर पड़ी। कूर्मकों की दृष्टि भी शृगालों पर पड़ी। वे दोनों डर गए। भागने में असमर्थ किनारे पर ही शरीर में हाथ, पैर और गर्दन को छिपाकर निश्चल, निस्पंद एवं मौन पूर्वक पड़े रहे। दोनों पापी शृगाल शीघ्रता से वहाँ आए उन्होंने कछुओं को इधर उधर घुमाया, पलटा, चलाया, नाखूनों एवं दांतों से घायल करना चाहा पर वे घायल नहीं हुए। दोनों ही शृगाल थके हुए मालुकाकच्छ की ओर चले गए। शृगाल चालाक होते हैं। यह जगत प्रसिद्ध है। उन दोनों कछुओं में से एक यह बोध नहीं कर पाया कि शृगाल चालाक होते हैं। उसने सबसे पहले अपने छिपे हुए अंग में से पैर को बाहर निकाला। शृगालों की दृष्टि उसी ओर थी। उन्होंने तत्परता से उस कछुए के पैर को नाखूनों से जकड़ लिया और दाँतों से तोड़कर उसे खा लिया। इसके बाद उसको फिर इधर-उधर पलटा। एक के बाद एक पैर एवं ग्रीवा आदि को उन्होंने छिन्न-भिन्न करके खा लिया। दूसरा कछुआ निश्चल पड़ा रहा उसे निर्जीव जानकर पापी शृगाल मृतगंगातीर से चले गए। उन्हें बहुत दूर गया हुआ जानकर दूसरे कछुए ने अपनी ग्रीवा को बाहर निकाला, इधर-उधर देखा फिर क्रमश: हाथ-पैर निकालकर शीघ्र गति से तालाब के अन्दर की ओर चला गया। इस तरह वह अपने प्राणों की रक्षा कर सका। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org