Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 51
________________ 38 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन बहुत अधिक थी। वसुदेवहिण्डी का विश्व कथा साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन कथाओं में मुख्य रूप से निम्न विशेषताएं पायी जाती हैं१. इन कथाओं में सर्वप्रथम हमें चरित्र का कथात्मक उत्कर्ष प्राप्त होता है। 2. इस युग की कथाओं में संकलन की प्रवृत्ति और लोक कथाओं को अभिजात्य साहित्य के रूप में प्रकट करने की परम्परा का प्रचलन प्राप्त होता है। 3. मनोविनोद, भयानक और प्रेम सम्बन्धी अनेक दृश्यों को प्रस्तुत करना इन कथाओं की विशेषता है। 4. स्थापत्य की एक स्थिर और सुस्पष्ट दृष्टि उस युग की कथाओं में दर्शित होती है। 5. वर्तमान कथाओं में व्यापकता, विभिन्नता, मानव प्रकृति का परिचय, वर्णन-सौन्दर्य, भाषा और शैली की सरलता इन कथाओं की देन है। 6. छन्द, अलंकार आदि के तत्त्व एवं रस की योजना का समावेश इन कथाओं 7. सरल, अकृत्रिम और सुन्दर शैली में प्रस्तुतीकरण के कारण इन कथाओं का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 8. कथाओं के मध्य में धर्म-तत्त्व नमक की उस चुटकी के समान है जो सारे __भोजन को स्वादिष्ट और सुखमय बना देती है। 9. प्राकृत कथाएं समसामयिकता को लिए हुए आज भी जीवंत बनी हईं हैं। 10. प्राकृत कथाओं में प्रकृति का सौन्दर्य एवं पर्यावरण की भीनी-भीनी सुगंध भी है। 11. प्राकृत कथाएँ अन्तर्जगत का साकार रूप लिए हुए हैं। 12. प्राकृत कथाओं में लोक-तत्त्व, लोकजीवन, लोक रीति-नीति आदि की सापेक्षता से आध्यात्मिक सत्यार्थ को उद्घाटित करने की शक्ति विद्यमान है। प्राकृत की कथाएँ मौलिकता से जुड़ी हुई कभी भी प्राचीनता को प्राप्त नहीं होने वाली हैं। इसलिए इनमें जीवन का सत्यार्थ है और समाज का उदारीकरण भी। (द) हरिभद्रयुगीन प्राकृत कथा साहित्य इस युग में कथा साहित्य का जितना विकास हुआ है उतमा अन्य युग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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