Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 40 . ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन सुरसुन्दरी-चरित्र एवं निर्वाण लीलावती कथा, कथाकोष-प्रकरण, जिनचन्द्र की संवेग रंगशाला, महेश्वरसूरि की नागपंचमी कथा, चन्द्रप्रभ महत्तर की श्री विजयचन्द्र. केवली चरित्र, गुणचन्द्र का महावीर चरित्र, देवप्रभ का श्री पार्श्वनाथ चरित्र एवं कथारत्न कोष, नेमिचन्द्र का महावीर चरित्र, रयणचूडारायचरित्र, नेमीचन्द्रसूरि का आख्यानकमणिकोष, समतिसरि का जिनदत्त-आख्यान, गणचन्द्रसूरी का नरविक्रमचरित्र, रत्नशेखरसूरि का श्रीपाल कथा, जिनहर्षसूरी का रत्नशेखरनृप कथा, वीरदेवगणि की महीपाल कथा, परमचन्द्रसूरि के शिष्य की प्राकृत कथा संग्रह मुख्य कथाएँ हैं। इस प्रकार ईसा की चौथी शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक प्राकृत कथा साहित्य का निरन्तर विकास होता रहा, जो समाज, संस्कृति और लोकतत्त्वों से परिपूर्ण है। प्राकृत कथा साहित्य की प्रवृत्तियाँ, उपलब्धियाँ एवं नवीन दष्टिकोण 1. प्राकृत कथा साहित्य से संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी की प्रेम कथाओं का विकास हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा में मल्ली की कथा प्रेमकथा है, तरंगवती प्रेमाख्यान है। लीलावती कथा अपने युग की सर्वश्रेष्ठ प्रेम कथा है। प्रेम-प्रसंग से सम्बन्धित अनेक कथाएँ नियुक्ति और भाष्यों में हैं। इस प्रकार. प्राकृत कथाओं में प्रेम का उद्भव, भेंट, स्वप्नदर्शन, गुण-श्रमण आदि की विभिन्न स्थितियाँ दिखलायी गयी हैं। 2. प्राकृत कथाओं को रोचक बनाने के लिए गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है। संस्कृत की चम्पू विद्या का विकास इन्हीं कथाओं से मानना उचित है। 3. गुणाढ्य की बृहद्कथा एवं हरिभद्र के धूर्ताख्यान को लोक कथाओं का विश्वकोष कहा जा सकता है। अत: लोक कथाओं के विकास और प्रसार में प्राकृत कथाओं का उल्लेखनीय स्थान है। 4. पशु-पक्षी की कथा का विकास भी प्राकृत कथाओं से हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा में कुएँ का मेढक, जंगल के कीड़े, दो कछुए आदि कथाएँ स्वयं भगवान महावीर के मुख से कहलायी गयी हैं। 5. प्राकृत कथाओं में इस लोक की समस्याओं का चिन्तन, परलोक की समस्याओं का समाधान, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों का चित्रण बहुत सुन्दर ढंग से किया गया है। 6. प्राकृत कथाओं में सिद्धान्तों का समावेश मध्य में किया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org