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एक कालचक्र कहलता है. अवसर्पिणी का पहला आरा चार कोटाकोटि सागरोपमका होता है दूसरा आरा तीन कोटाकोटि-तीसरा दोका, चौथा ४२ हजार वर्ष कमती एक कोटाकोटि सागरोपम का, पांचवां (२१) हजार वर्षका और छठा भी (२१) इक्कीस हजार वर्षका माना गया है. सब मिलकर (१०) कोटाकोटि सागरोपमकी अवसर्पिणी
और १०) कीही उत्सर्पिणी मानी गई है। उत्सर्पिणीमें पहला २१ हजार वर्षका, दूसरा भी २१ हजार वर्षका, तीसरा ४२ हजार वर्ष न्यून एक कोटाकोटि सागरोपमका, चौथा दो, पांचमा ३
और छठा ४ कोटाकोटि सागरोपमकी स्थितिवाला गिना जाता है ।। ____ अवसर्पिणीके तीसरे आरेकी आखीरमें पहला तीर्थकर और चौथे आरेमें २३ तीर्थकर होते हैंउत्सर्पिणीके तीसरे आरेमें २३ और चौथे आरेके प्रारंभमें अंतिम चौवीसवें तीर्थकरदेवका होना माना गया है । इस वर्तमान अवसरपिंणीकालमे-श्रीऋषभदेव १ श्री अजितनाथ २ श्री संभवनाथ ३ श्री
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