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" सुकृतसंकीर्त्तन " काव्यमें लिखा है किकुमारपाल राजाने अपने राज्य - वंशधरोंकी और पूर्वकालमें पुत्रसम पालनको हुई गुर्जर भूमीकी म्लेच्छो रक्षा कराने के लिये- देव भूमिसें आकर वीरधवलको उपदेश किया कि - राजधानीकी रक्षाके लिये इन भाग्यवान को अपने मंत्री बनाओ । मतलब इतना तो उभयतः सिद्ध है कि देवकी सहायतासे वस्तुपाल बंधु सहित मंत्री पदपर प्रतिष्ठित हुए । मंत्रियुग्मने - दानशाला - धर्मशाला पौषत्र शाला - पाठशाला - वांचनशाला गौशाला - स्त्रीपुरुint शिक्षणशाला वगैरह हजारों लाखो धर्मकार्य कर कराकर इस मानव जीवनको सफल किया । मेरे पास " गिरिनार तीर्थोद्धार प्रबंध नामका एक प्राचीन पुस्तक है, उसमें ' रत्न श्रावक के किये श्री गिरिनारतीर्थ के उद्धारका वर्णन है और प्रसंग वस्तुपाल तेजपालके किये सत्कार्योकी नामावली है उससे और कीर्तिको मुदिसे एवं " फार्वस साहिब " की बनाई रासमालासे वस्तुपालकी बहुत अपूर्व चर्याका अवबोध
Aho! Shrutgyanam