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[ ६७ ] चरकों भिक्षा देकर आपने आपना शिष्य बनाया वह भिक्षाचर उत्तम भावसे एकही दिनका संजम पालकर कुणालका लडका संपति हुआ ।
वह भाविभव्यात्मा संप्रति कुमार जब युवान हुवा तब नगर में रथयात्रा के साथ फिरते हुए आर्यहस्ति सूरिजी को देखकर प्रतिबोधक प्राप्त हुआ.
जन्मान्तरीय गुरु शिष्य संबंध उसने जातिस्मर्णसें जान लिया. इसी ही लिये वोह आचार्य महाराजका पक्का उपासक बनगया. आचार्य महाराजने उसे जैन धर्मका स्वरूप समझाकर गृहस्था वस्थाके उचित धर्म से विभूषित किया ।
संप्रति नरेश वासुदेव न होकर भी त्रिखंडाधि पंति - अर्ध भरतभोक्ता अर्धसम्राट कहलाता था.
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॥ संप्रतिके किये शुभ कार्यों की सूचि . ॥
१२०५००० बारह लाख पांच हजार जिन प्रासाद बनवाये.
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