Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library

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Page 143
________________ [ ११७ ] यह जिकर उस समयका लिखा जाता है कि जब बावीसमे तीर्थकर श्रीमान् नेमिनाथ स्वामीके निर्वाणको सिर्फ चारहजार वर्षही बीते थे । देवताओके बनाये सोनेके कमलपर यतियोके प्रभु ज्ञानी देव विराजमान हुए वनपालने जाकर राजाको वधाया, राजाने सफल राजकीय मंडल को सूचना दी, तमाम नागरिक लोगोकोभी समाचार पहुँचाया । विविध यान, विविध, वाहन चित्र विचित्र ऋद्धि परिवार सहित चारही वर्णकी जनता सूरि शेख - रकी सेवामे जा पहुंची । आनंदके अपूर्व आवेश से लोगोने उस विश्वो पकारी मुनिपतिको भक्ति भाव पूर्वक वंदन किया । धर्मलाभ रूप आशीर्वाद पाकर राजासे लेकर सामान्य व्यक्ति पर्यंत सब लोग यथायोग्य स्थानपर बैठे । पूर्णचंद्रके तीनही पुत्र श्रद्धारागमे रक्त थे, देव . गुरुसेवा तो उनका मुख्य कार्यक्षेत्र था. राजाके सा य वहभी बगीचेमे पहुंचे और चंद्र दर्शनसे चकोर - Aho ! Shrutgyanam

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