Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library

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Page 154
________________ [128] नमस्कार तणु फळ सार, जईने गिरनार गिरिपर तेडी सउ साधनेरे. // ए आंकणी // नाथ नाथ नेमिनाथने, वंदनकरवाकानः गगन मार्गथी आवी. या, बेसीने गजराज. गज पद कुंड को गजपाथी काही पाथनेरे / नमीए. // 1 // सरस्वती रसवती नहीं गंगारंगाय, साकर पण कांकर सली, तस जल आगे थाय. सुरपति स्नान करे एवा जलथी गाई गाथनेरे // नमीए // 2 // शिवादेवी सुत नेमजि, दया तणा भंडार; स. हज आत्म तेजेकरी, शोभेअपरंपार. काढे तमो मग्न उद्विग्नने भींडो बाथनेरे // नमीये. ॥३॥ध्यान ध्वंस करे नाथर्नु, कर्मरोग तत्काल. अनाहत नादे करी, नहोय वांको वाल. ते कारण योगी कदी न पीये कवाथनेरे // नमीये० // 4 // संसार सागर मांही छे, मोहावर्त महान् ; संसारी सारी तिहां, डुबी रही छे जहान. तारे हंसपरे प्रभु तरतज़ पकडी हाथ: नेरे / नमीये. // 5 // समाप्त. Aho! Shrutgyanam

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