________________
A
[१२३] खसे वर्णित किया है परंतु कभी कोई सांसारिक न्याय नीतीसे संबंध रखनेवाला कार्य भी हो और उसका करना भी अगर मनुष्यने स्वीकार किया हुआ हो तो उससे भी पीछे हटना यह आर्य पुरुषकी मर्यादा नहीं है सुनो"दुख लाभ हो यां हानि हो अपकीर्ति चाहे हो भले, "पत्थर गले पानी बले अचला चले विधि भी टले । "हटते नहीं पर धीर प्रणसे पाणके रहते कभी, "मांनी मनुज अपमानको जीते नहो सहते कभी ।
उस पुन्यवानके इस धैर्यको देखकर सकल जनसमाजने आशीर्गद दिया. राजाने अपनी सेना दी और भी मार्गाचित सामग्री दी। सोनेको परीक्षा अग्निमे होती है, संघपति. आनंदमूर्वक श्री संघको और अपने धर्मोपदेशक गुरुको साथ लेकर अविछिन्न प्रयाणांसे तीर्थ राजके सन्मुख चले जा रहे है. इतनेमें विकराल रूपवाला एक राक्षस उनक को मिलता है, सर्व लोग भय भीत होकर इमर 3 धर भागनेनो तयारी करते है, सुभा लोग भी
Aho ! Shrutgyanam