Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library

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Page 144
________________ [ ११ ] की तरह हर्षको प्राप्त हुए । धर्म देशनाका आरंभ हुआ जिन वचन सामान्य वक्ताकी जुबान से निक ले हुएभी श्रोताके हृदयको विमलता पहुंचाते है तो भला देव देवेन्द्र वंदित अतिशय ज्ञानीकी धर्म देशनाका तो कहनाही क्या था !!! धन्वंतरी - लुकमान आदि पूर्वकालीन वैद्य हकी मोमे और आजके ठोक पीटकर वैद्यराज जैसे नीम हकीमो अंतरही क्या ? अंतर फक्त इतनाही है कि वोह निदान पूर्वक चिकित्सा किया करते थे और आज कालके बिचारे कितनेक नामधारी वैद्य कि जिनको अपने मतलब सेही काम है उनमे वह गुमनही पाया जाता इसीहो लिये उनपर मनुष्यको आस्था नही जमती । जब आस्थाहो नहीतो रोगाभाव कहां से? पूर्व कालके ज्ञानी गुरु मानिंद धन्वंतरी के थे । धर्मदेशनामे अनेक विषयोंकी व्याख्या करते हुए ज्ञानी महाराजने प्रसंग पाकर कहा- लोकनाथ ती थैंकर देव जगतके परम उपकारी है, इसके के निर्वाण जाने के पीछे भी उनके उपकारको सा Aho! Shrutgyanam

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