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[७४1 थे सुनाजाता है कि नवाङ्गी टीकाकार अभय देवमूरिजीके संप्रदायमे शिलालेख लिखाना अनुचित समझा जाताथा.
कर्माशाह शेठके कराये श्री शत्रुनय महातीर्थके उद्धारके कार्यमे सर्व प्रकारके स्वतंत्र अधिकारों के होते हुएभी आचार्यश्री “विद्यामण्डग" मूरिजीने अपना नाम किसी शिलालेखमे दर्ज नही करवाया, दूर न जाकर वर्तमान युगकी विचारणा करते हुए मालूम देता है कि आजभी संसारमे जैसे मनुष्य है कि जो कार्य करके भीनामकी परवाह नही करते जोधपुर राज्यान्तर्गत कापरडा तीर्थ के उद्धारमे आचार्य श्री विजय नेमिमूरिजीने जोजो कष्ट सहन किये है सुनकर अनहद्द अनुमोदना आती है, परंतु उस तीर्थ पर उन्होने अपना नाम किसी प्रशस्ति मे नही लिखवा.
अब मुख्य बात यह है संपति नरेशके होने में क्या प्रमाण है ? उसके उत्तरमें इतनाही कहना हो गाकि संप्रतिके अस्तितमे जैन इतिहासही प्रमाणभूत हैं ! संसारमे जैसा कोई साहित्यक्षेत्र नही कि जिस
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