Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library
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[१०] ए अमचे सिरकरो ॥ तुमने होनो कल्याणरें रत्न ॥ १० ॥
॥ ढाल ८ मी॥ ( तिरथ अष्टापद नमिये ।। ए देशी ।। पीउ राखे प्राण आधार ॥ पदमणि एम भांखेरे ।। तुम पासे कुण गति नारिनि ॥ अम जीवन कुण राखेरे ॥ पी० १॥ तुम विजोगे एकली अ. बला ॥ किम रहे घर निरधारीरे ।। कंत विना कानिने सघले ॥सुनो संसार ए भारीरे ॥पी०२॥ वालमतणे विजोगे अबला || जन्म झुरंता जायरे सर्व सोभा ते दिसे कारमि ।। भुषण दुखण थायरे ॥ पी० ३ ॥ पियरने सासरे पनोति ॥ पियु विण मान न लहिएरे ॥ असुकुन जाणि तस मुख वरजे लोके विधवा कहियेरे ॥ पी० ४ ॥ पीउ आधिन सदा कुल नारी ॥ पति जाते परलोकरे ।। अंते जी. वित ते पण मृत्यु ।। पुरीत पियुने शोकरे ॥ पो० ॥५॥ ए उपसर्ग सहि सहू.स्वामि ॥ तुम होजो
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