Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library
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[१०२] वात विचित्र ॥ प्रा० २॥ संघ सहु को हवे संचरेरे ॥ फरिफरि पार्छ जोय ॥ नयने श्रावण झडि लगो. रे ॥ कंपि ने चाले कोय ॥ प्रा० ३ ॥ शरण श्री नेमर्नु आदरीरे।। अणशणकीय सागार ॥ संघ पति धीर थइ रयोरे, सहु करे हाहाकार ।। मा०४ ॥ प्रेत गुफा मांहे लइ गयोरे ॥ रहो ते रुंधो द्वार । सिंह नाद अति सुर करेरे ॥ बिहावे ते अपार ॥ प्रा. ॥ ५॥ कोमल मुत प्रीया पक्षणोरे ।। धरे ते काउ सग ध्यान ॥ कंथ जव कष्टथी छुटशेरे ।। तव लेशां अनपान ॥ मा० ६ ॥ एहवे रेवतपर्वतेरे । जावे छे क्षेत्रपाल सात ॥ मात अंबाने भेटबारे ॥ तेणे मुणौ एह उत्पात ॥मा० ७ ॥ तेणे जइ अंबाने विनव्युरे ॥ कुरु कुरु शब्दे जेम ॥ पर्वत एक अति धड हडेरे ॥ नवि दिठो आगेरे एम ॥ प्रा० ८ ॥ कोइक महंत पुरिषने, उपद्रव करे बहु दुष्ट । ज्ञाने अंबाए निहालियोरे॥ दीठो संघ पति कष्टापा १॥
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