Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library

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Page 136
________________ [११०] उद्धार ॥ सत नव चोरासि विशाल || किधि तेणे पोखधशाल || कोटि अहार धन वाव्या । जैन भं. डार लखाव्या ॥ २० ॥ दंतमय दीपता उंच ॥ सिंहासन ते सत पंच ॥ जादरमय समवसरण ।। पांचसे पांच शुभ कर्ण ॥ २१ ॥ सवा लक्ष किंव भराव्या । सुरि पद एक वीश थपाव्या।। स्वामि व. छल वरिसे बार ॥ संघ पूजा ते वणवार ॥ २२ ॥ शिवालय त्रैगशे दोय ॥ सासे ब्रह्मशाला जोय । कपालिक मठ एता । सेहस जोगि तिहां जमता ॥ २३ ॥ शत्रागार सय सात ।। गउ सेहस दान विख्यात । विद्या मठ सत पंच ॥ शातसे कुप करा संच ॥ २४ ॥ चारसे चोसठ वापि ॥ ब्रह्म पूरि तीहां सत आपि ॥ सरोवर चोरासी प्रमाण ॥ बत्रीस दुर्ग पाखाण ॥ २५ ॥ शेजेजे शाडि बार जात्र । पोख्या अनेक जन पात्र ॥ तेरमि वारे ए मार्गे ।। वछ पाल ते पोता स्वर्गे ॥२६॥ केतां मित्थ्यात्वि नाकाम ॥ कीधां राखवा एणे नाम ॥ अवसर्पणोए चखाण्या ॥ जेहवा प्रबंधे जाण्या ॥ २७ ॥ सवी धनर वय संख्या जोडि । चौद लाख तेत्रीसे क्रोडी Aho! Shrutgyanam

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