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[ ८४ ] ल्प परिचय “जैन साहित्य सम्मेलन " नामक विवर्ण पुस्तकके लेखांसे लगसकता है, उसमे मु. विद्याविजय जी जैसे मुनियोंके और साहित्याचार्य विश्वेश्वरनाथ जैसे परिपक्क अभ्यासियोंके लेखोसे बहुतसो वातोंका स्पस्टी करण हो सकता है. ( उपर्युक्त पुस्तकोके नाम भी वहांसेही उतारे )
सिवाय इनके " वसुदेवहिण्डी" और "पउम चरिय" नामक ग्रंथ उपर लिखे ग्रंथोसे भी अति प्राचीन और इतिहास के भंडार हैं मुशकिल यह है कि उनको आज तक किसीने छपवाकर प्रसिद्ध नही किया। पउमचरिय तो अभी थोडा समय हुआ भावनगरकी श्री जैनधर्मप्रसारकसभा तर्फसे छप गया है अधिक सौभाग्यकी बात यह है कि उस ग्रंथका संशोधन कार्य जर्मन विद्वान डो० हर्मन जे कोबीके हाथसे ही समाप्त हुआ है ।
इस सविस्तर लेखका आशय सिर्फ इतना ही है कि यह प्रतिमा (मूर्ति ) संप्रति राजाके समयकी ही एशिया खंडके हंगरी प्रान्त वर्ति बुदापेस्त शह
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