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[८६] अनेक तरहके फल, अनेक प्रकारकी लताओं। अनेक तरहकी लकडी । अनेक जातिको धातुओं। अनेक जातिके मृग । अनेक जातिके पक्षी । अनेक जातिके व्याघ्र अनेक जातिके सर्प-सिंह-शार्दूल-हकीकफटिक-नीलम-योगनिष्ट योगि-अनेक ध्याना रूढ तपस्वी अनेक कंदाहारी वनवासी-अनेक मंत्र वादी अनेक दीर्घायु अवधूत अनेकानेक ब्रह्मचारी । इस पर्वतमें रहते थे।
गिरनार तीर्थ के सविस्तर हालके लिये दौल. तचंदजी वरोडियाका लिखा गिरनार महात्म्य दे. खनेकी भलामण करके कल्याणके कारण भूत इस ग्रंथको समाप्त किया जाता है। ॐ शांति ३॥
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