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गांने सब वृत्तान्त यथावस्थित ज्यों कात्यों कह दिया, यह सुन कर श्री बादशाहने अत्यन्त चमस्कृत हो कर अनेक नर रन्नोसे अलङ्कत सभामें सब लोगोंके सामने संग्राम सोनीकी अत्यन्त प्रशंसाकी, सात वार उनका परिधापन किया अर्थात् सात खिल्लतें सिरोपाव दिये तथा अति उत्सव साथ उन्हें घर भेज दिया, तदनन्तर संग्राम सोनी. का यश सर्वत्र फैला।
संग्राम सोनी पड् दर्शनों में कल्पतरुके समान थे, जैसे कि-गुर्जर भूमिका निवासी कोई ब्राह्मण जन्मसे ही दरिद्र था वह संग्राम सोनीको दान शूर सुन कर मांडवगढमें आया और व्यवहारियांकी सभामें बैठे हुए संग्राम सोनीके पास पहुंचा, आशी. वदि देकर वहां बैठ गया, सोनीने कहा कि हे विप्रराज । कहांसे आये हो ? वह बोला कि-मैं क्षीर समुद्रका नौकर हूं, उसने आपके नामका एक लेख दे कर मुझे भेजा है, सोनीने कहा कि-बांचो, तब उसने लेखको इस प्रकार पहा स्वस्ति प्राची दिशा के अन्त भागसे. बहुत से मणिगणांसे शोभित
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