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[ ५९] .................... पार्वती पति वर लब्ध प्रौढ-प्रताप-श्री कुमारपाल देव-कल्याण विजय राज्ये इत्यादि विशेषणांसें सुशोभित लंबा चौडा लेख है और उसमे अमुक राजाकी राणीकी तर्फसें फरमान है कि अमुक-अमुक तिथियों को किसीने जीव हिंसा नहीं करनी अगर कोई जीव हिंसा करेगा तो उसको ४ द्रम्म-( अशर्फियें-) दंड किया जावेगा.
देखो-फार बस साहिबकी बनाई रासमाला खड पहला पृष्ट-३०१-३०२.
इस भूपालने जैसे शत्रुञ्जयतीर्थपर-तारण दुर्ग ( तारंगाजी) पर विशाल और उन्नत जिन चैत्य बनवाये थे वैसे प्रस्तुत तीर्थाधिराज श्री गिरिनार तीर्थपर जो चैत्य बनवाये थे उनको आज अपने कुमार पालकी ढूंकके नामसें पहचानते हैं, इन चैत्यांका निर्माण और इनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् ११९९ से १२३० तक किसी भी सालमे हुई है क्योंकि-प्रस्तुत नरेशका सत्ता समय यह ही है ।
आपकी राजधानी अनहिलपुर-पाटन, भारतके
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