Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijay Free Jain Library

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Page 64
________________ [४] अपने पूज्य माता-पिताके कल्याण के लिये श्रीशा. न्तिनाथ स्वामी-श्री अजितनाथ स्वामीकी कायो. त्सर्गस्थ दो मूर्तिये स्थापन कराई । मंदिरके मंडपमें -भव्य-मनोहर इन्द्र मंडप बनवाया-श्री नेमिनाथ स्वामीकी मुख्य प्रतिमा सहित-अपने पूर्वजोंकी मूर्तियोंवाला दर्शनीय मुखोद्घाटनक स्थंभ करा. या । अपने पिता आसराज की और दादा सोमराजकी घोडेसबार मूर्तियें करवाई । अपने पूर्वजोंकी प्रतिकृतियोंके स.थ सरस्वती माताकी त्र्ति आर देव कुलिकाएँ तयार कराई ।अंबिका माता के मंदिर के आगे विशाल मंडप बनवाया। अंबिका माताकी मूर्तिका परिकर तयार कराया। परम तेजस्वी तेजपाल ने अपने कल्याण वास्ते कल्याणत्रितय नामका श्री नेमिनाथ प्रभुका चैत्य-संगमरमरकी मुफैद फटि जैसी शिला. ओंसें बंधाया, और उस मंदिर के शिखरपर-सातसा चौसठ गयाणे सुवर्णका कलश चढाया । और भी अनेक मूर्तियें भराई । प्रपाएँ लगवाई । भगवत् प्रतिमाओं की पूजाके लिये पुष्प बाटिकाएँ ___Aho! Shrutgyanam

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