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तीसरे आरे के अवसान समयमें पहले शीर्थकर श्री “ ऋषभदेव स्वामी" हुए हैं, उनके चौरासी गणधरोंमेंसे "पुंडरीक स्वामी" जो मुख्य शिष्यथे, उन्होने खुद श्री ऋषभदेव स्वामीके मुखा. बिन्दसे श्री शत्रुजय महातीर्थ का माहात्म्य सुन कर सवा लाख श्लोक प्रमाण श्री शत्रुजय मा. हात्म्य नामक ग्रंथका निर्माण कियाथा. ऐदंयुगीन मानवोंको अल्पायुः और अल्पमेधावी जानकर श्रीवीरम के पट्टधर पंचम गणधर श्रीसुधर्म स्वामीजीने उस महान् ग्रंथको घटाकर २४००० श्लोकमें रचाथा, आगामी कालके मनुष्योंकी स्थितिका पर्यालोचन करते हुए श्री “धनेश्वरमूरि "जीने श्री गणधर प्रणीत ग्रंथको भी १०००० श्लोकों मे संक्षिप्त किया है। ____ फिल हाल श्री आदि नाथ-भगवान् के तीर्थसे लेकर आज तक यह तीर्थ-जैन प्रजा के ही सर्वथा माने गये हैं और माने जा रहे हैं । हां कोई ऐसा भी समय आजाता है कि-उन उन देशोंके या नगरोंके: नरेश जब प्रबल
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