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[ २६ १ नही शकती । उस वक्त उन्होंने साधु धर्म के जानकार और धर्म के रहस्य के भी ज्ञाता किसी नौकरको थोडे अरसे के लिये साधुका वेष पहना कर मंत्री राजके सामने बुलाया, साधुको देख उसे गौतमावतार मान कर अशक्तिकी हालत में भी मंत्रीको इतना हर्ष हुआ कि वह उठ कर उस कल्पित सुनि के पाओं में जा गिरा । और सारे जन्मके किये पा पोंकी निन्दा आलोचना कर सद्गतिको माप्त हुआ उस कल्पित साधुने जब देखाकि राजमान्य मंत्री मेरे पाओं में पड़ा है तो उसे उस मुनि वेषपर बडा सद्भाव आया । उसने उस वेशको न छोड गिरिनार पर्वतपर जाकर साठ उपवासका अनशन कर अपना कार्य साध लिया.
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मंत्री अंत्य कार्यको करके पाटन आये हुए उन लोगों से पिताकी मृत्यु सुन कर लडकोंने अ सीम दुख मनाया और निज पिताको ऋण मुक्त करने के लिये - बाहडने शत्रुंजय उद्धार कराया और अंबडने गिरिनारकी पौडियें बंधाई (देखो मेरा लिखा कु. पा. च. हिन्दी । बाहडने - शत्रुंजय और
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