________________
[२५] पासके लोगेांने पूछा आप कृपाकर उन क मांका नाम बताओं हम राजासे और भट्ट आपके पुत्रोंसे पूर्ण करायेंगे । मंत्रीने कहा-मैं चाहताथाकि-आम्रभट्ट ( अंबड ) को दंडनायक की पद्वी दिलाउं। १ । दूसरी मेरी इच्छाथी कि-श्री शत्रुञ्जयतीर्थका उद्धार कराउं ॥ २ ॥ तीसरा मेरा मनोरथ थाकि गिरिनार तीर्थकी पौडियां बनवाउं ॥ ३ चौथी मेरी उत्कट कल्पना यह थी कि जब कभी मेरा मृत्यु हो उस वक्तमैं अपने अंत्यसमयकी आराधना मुनि महाराजके सामने करूं और उन महात्माओंके सन्मुख आलोचना करके अपने इस भारी आत्माको हलका करूं ॥ ४॥ इन चार कार्यों में से एक कीभी सिद्धि न होनेसे मैं अपने हताश आत्माको धिक्कार कर रो रहा हूं !
पास बैठे हुए मंत्री लोग बोले आप निश्चित रहें पहले ३ कार्य तो आपका सुपुत्र वाहड करेगा।
और आलोचना के लिये हम साधु महाराजकी तलाश करते हैं। देखने से ( मालूम हुआ कि इस जंगलमें मुनि राजकी योगवाइ तो मिल
Aho! Shrutgyanam