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अमदावाद तक पहुंचे थे कि - जगद्गुरु महाराजका ऊनामें स्वर्गवास हो गया । आप ऐसे तो आस्तिक थे कि - दशवैकालिक सूत्रका स्वाध्याय किये विना अन्नपानी नही लेते थे । जाप करनेमें आपका वडा लक्ष्य था । सिर्फ नवकार महामंत्रका ही आपने साढे तीन क्रोड जाप किया था। दो हजार साधु साध्वी आपके आज्ञा वर्त्तिथे ।
त्याग वृत्ति तो आपकी इतनी उत्कृष्ट थी कि जैन धर्ममें प्रसिद्ध छ विगइयोंमेंसे दूसरी विगइ आप एक दिनमें कभी नहीं लेतेथे । अर्थात्-प्रतिदिन पांच विगइयोंका त्याग कर फक्त एकही विगइसें शरीरयात्रा चलाते थे ! ! !
इस आपके विशुद्ध उच्च जीवनका जैन जाति पर तो पढे उसमें आश्चर्य नहीं बल्कि जहांगीर बादशाह पर बडा प्रभाव पडता था श्री शनंजय और गिरनार पर आपको उत्कृष्ट भक्ति राग था । वि. वर्णन के लिये देखो ऐतिहासिक (सज्ञायवाला भाग १ ला । )
जहां अनेक जिनमंदिर पासपास हो उस
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