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[ २८ ] पद्या हर्षेण कारिता ||१||
सुना जाता है कि, एक दिन भट्टारक श्री हीर विज रिजीको गुरु महाराजकी तर्फ से एक पत्र मिलाउसमें लिखा हुआ था कि इस पत्रको पढकर तुरंत विहार करना । उस दिन श्री विजय हीरसूरिजी के बेलेकी तपस्या थी तोभी गुरु महाराजकी आज्ञाको मान देकर फौरन विहार किया और - पारणाभी गामसे वाहिर जाकर किया ! ! संघने यह भक्ति राग - और गुर्वाज्ञाका सन्मान देखकर एक आवा जसे श्री जिनशासनकी और शासनाधार सूरिजी की प्रशंसा की ।
उसी विनयका यह फल था कि वह मुस्लमान बादशाह अकबरको अपना परमभक्त बनाकर उससे अहिंसा धर्मकी प्रवृत्ति करा सकेथे । और अपने लगाये दया धर्मके अंकुरोंको महान् सफलताओंके रूपतक पहुंचाने वाले अर्थात् - अकबर बादशाह के निखिल राज्यमें वर्षभर में ६ महीने तक जीवदया पलानेवाले विजयसेनमूरि शान्ति चंद्रऔर भानुचंद्र जैसे भक्त और समर्थ शिष्यों को
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