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क्रमशः एक समय ऐसा भी आगया कि गुर्जरपति सिद्धराज के वो पूर्ण विश्वास पात्र मंत्री बन गये। सिद्धराजकी मृत्यु के पीछे वह, कुमारपालके भी वैसे ही मानीते मंत्री बने रहे । कुमारपालका इनपर बडा भरुसा था । बल्कि सिद्धराज जयसिंहकी तीत्र इच्छा इनके लडके चाहडको राज्य देनेकी होनेपर भी यह नर रत्न कुमारपालको राज्य दिलानेमें और संकट ग्रस्त कुमारपालकी जान बचानेमें पूरे पूरे मददगार थे । सोरठ देशके समर राजासे लडने वास्ते फौज दे कर कुमारपालने इन्हे सौराष्ट्र भेजा था। उसे कथाशेष कर-और उसके लडकेको उसकी गादीपर बैठाकर उदयन मंत्री पीछे लौट रहे थे कि-रास्तेमे उनकी तबीयत बहुत बिगड गई। अनेक उपाय करनेपर भी उन्हें कुछ आरामन हुआ । उन्होंने जब जाना कि मेरा यह अवसान समय है तब अश्रुपात कर रो पडे : पास के लोगोंने उनको अनेक तरहसे आश्वासन दिया। तब वह बोले मैं मरनेके भयसे नहीं रोता, मेरे निर्धारित चार काम शेष रह जाते हैं और मेरी जीवनदोरी समाप्त होती है !! परंतु इसमें किसीका भी उपाय नहीं ।
Aho ! Shrutgyanam