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[२०] लोगोंसे मांगकर लाया हूं। आपकी मरजी हो तो आप रुपया लेलेवें और आपकी इच्छा हो तो आप तीर्थोद्धार के पुण्यकी अनुमोदनाका फल प्राप्त करें।
राजाने दंडनायककी तारीफ करते हुए कहा "तुमने इस युक्तिसेभी हमको पुण्यके भागी बनाए । इस लिये हम तुमारी सज्जनताकी पुन: पुन: श्लाघा करते हुए उस पुण्यकी श्लाघासे पूर्ण तृप्त हैं। द्रव्य जहां जहांसे लाये हो उनको वापिस लौटा दो धन विनश्वर है और धर्म अविनाशी है। धन यहांका यहां रहने वाला है और धर्म भवान्तरमेंभी साथ आकर मनुष्यको हर एक समय सहा. यक होनेवाला है। इस वास्ते हमको पुण्यका स्वीकार सर्वथा इष्ट है और हम इस बिना पूछे किये कामके लिये भी तुमपर पूर्ण खुश हैं."
धन्य है ऐसे राजभक्त कर्मचारियोंकों ! और साधुवाद है ऐसे नरेशांकों !!
एक समय राजा सिद्धराज खुद गिरनार तीर्थकी यात्रा करने गये । तीर्थाधिराजकी पवित्रताउत्तमतासे अति प्रसन्न हो कर उन्होंने कुछ गाम
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