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करने गये थे उस वक्त जूनागढका राजा रावखेंगार जूनागढकी गादी पर था. उसने मूरिजीका बडा सत्कार किया. और उन्ही आचार्यश्रीजीके शिष्य " बलिभद्र " मुनि जब किसी संघपति के बुलानेपर वहां गये तब वह ही रावखंगार बुद्धधर्मका पूर्ण पक्षपाती हो गया था.
। यह वृतान्त संक्षेपसे नीचे
लिखा जाता है। किसी पुण्यात्मा कल्याणार्थी जीवने गुरूपदेश को श्रवण करके लक्ष्मीके सदुपयोगका उत्तम मार्ग समझ कर श्री सिद्धगिरि और रैवताचलका संघ निकाला. श्री संघ जगती तिलक श्रीशत्रुजय तीर्थकी "यह आहडा ग्राम-उदयपुरसें १ मील पूर्वकी ओर रेल्वेस्टेशनके पास है. आजकल राणा वंशका दग्ध स्थान यही है । यह गाम तीर्थभी माना जाता है। - २-राव खंगार वि.सं. ९१६ में गादीपर बैठा था. इसके बापका नाम नवधन था।
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