Book Title: Dhyan Shatak
Author(s): 
Publisher: Divyadarshan Karyalay

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Page 12
________________ पृष्ट | पंक्ति २५ २६ ३१ ३२ ३४ ३५ ३५ ३८ ४१ ४५ ५० ५३ ६० ६४ १९ १६ ६६ ६७ ३ ११ २४ २ १८ १९ २० २० २२ ३ २ १३ १६ ७ US ६ ६१ २५ ६२ १२ ✓ x 15 ܐ * १२ १३ २२ २ अशुद्ध कहेंगे चाह कर पमत्था या मेरी समाधि या अणुसार वेस्सं या लोहा हाथ ( २ ) ( तैयार करवाया हुआ ) मोक्षेच्छा होते समाविष्ट हैं पससइ होना भी रहे समता हैयाने कारण ( द्वि०) चलाने से हिंसातु० जलता खजर विश्य हो तो होने को निरवे बक्व रहेगा स्वेच्छा से पसत्था यानी मेरी प्रसमाधि यानी अणुसार वेस्सं यानी लोहा शुद्ध हाथा निकाल दो मोक्षेच्छावश समाविष्ट होते हैं पसंस होना इसके भीतर रहे ममता हो कार्यं चलाने पर हिसानु० जलती खंजरा विश्व न हो तो होने का निरवेत्रखं

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