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धवला पुस्तक 1
29 जीव की विभिन्न पर्यायें जीवो कत्ता वत्ता य पाणी भोत्ता य पोग्गो। वेदो णिण्हू सयंभू य सरीरी तह माणवो।।81।। सत्ता जंतू य माणी य माई जोगी य संकडो। असंकडो य खोत्तण्हु अंतरप्पा तहेव य।।82।।
जीव कर्ता है, वक्ता है, प्राणी है, भोक्ता है, पुद्गल है, वेद है, विष्णु है, स्वयंभू है, शरीरी है, मानव है, सत्ता है, जन्तु है, मानी है, मायावी है, योगसहित है, संकुट है, असंकुट है, क्षेत्रज्ञ है और अन्तरात्मा है।।81-82॥
मार्गणा का स्वरूप एवं भेद जाहि व जासु व जीवा मग्गिज्जंते जहा तहा दिट्ठा। ताओ चोइस जाणे सुदणाणे मम्गणा होति।।83।।
श्रुतज्ञान अर्थात् द्रव्यश्रुत रूप परमागम में जीव पदार्थ जिस प्रकार देखे गये हैं, उसी प्रकार से वे जिन नारकत्वादि पर्यायों के द्वारा अथवा जिन नारकत्वादि रूप पर्यायों में खोजे जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं और वे चौदह होती हैं, ऐसा जानो।।83।।
गति का स्वरूप गइ-कम्म-विणिव्वत्ता जा चेट्ठा सा गई मुणेयव्वा। जीवा हु चाउरंगं गच्छति त्ति य गई होइ।।84।।
गतिनामा नाम कर्म के उदय से जो जीव की चेष्टाविशेष उत्पन्न होती है, उसे गति कहते हैं अथवा जिसके निमित्त से जीव चतुर्गति में जाते हैं, उसे गति कहते हैं।।84।।